संक्षिप्तीकरण कला | Sanchhipti Karan-kala

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Sanchhipti Karan-kala by जे.पी. शर्मा - J.P. Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२१ भी अनिवार्य नहीं है । कभी-कभी कोई भाव या संवेदना ही अपने कुशलतापुणुं प्रतिरूपरा के माध्यम से उद्देश्य की सफलता सिद्ध कर लेती है । दिनेश --हाँ तब तो मेरे श्रोर श्रापके हष्कोश में बहुत भेद हैं । २. भाषण या लेख संक्षिप्तोकर रा भाषण और लेख में प्रायः एक ही प्रणाली का श्रनुसरण होता है । हाँ दोनों के प्रारंभ भ्रौर झन्त में कुछ भेद रह सकता है । इसके शझ्रतिरिक्त एक भेद यह भी होता है कि भाषरण में. बैयक्तिकता के समावेश की झ्रधिक संभावना रहती है किन्तु यह नहीं कहा जा सकता कि लेख में बेयक्तिकता के लिए कोई गुंजाइश हो नहीं है । भाषण का प्रारंभ श्रोताथों के प्रति संबोधन के साथ होता है भ्रौर भ्रन्त में भी भाषणकर्ता श्रोताश्रों का स्मरण किये बिना नहीं रहता । यद्यपि श्रोतापों की स्मरणीयत्ता भ्रतिवायंता नहीं है फिर भी शिष्टाचार की मांग के कारण उसकी श्रावश्यकता भ्रवश्य होती है । भाषणकर्ता अपने माषरण का विषय भी घोषित कर देता है किन्तु संबोधन के पश्चात्‌ । लेख में यह प्रतिबंध नहीं. होता । यह बहुत संभव है कि लेख वैयक्तिकता के किसी संकेत के बिना भी समाप्त हो जाय । लेख में शीषंक का प्रमुख स्थान है । श्रस्यथा पाठक की समभक को बड़ी दुरूहता का सामना करना पड़ता है । इसके भ्रति- रिक्त सिबस्ध में रचना-कला का श्राश्रय झ्रावश्यक है जबकि भाषण-कला भाषण कर्ता के व्यक्तित्व के भ्रतिरिक्त उसकी. भाषण शेली ध्वनि-प्रसार झादि से भी संबंधित होती है । लेख की भूमिका ग्रौर श्रत्त का विशेष महत्त्व है । ये दोनों मिलकर इतने सम होने चाहिए कि समग्र-लेख का सार इन दोनों को पढ़कर ही प्राप्त हो जाये.। भाषण श्रौर लेख में तक प्रणाली भी बड़ी आवश्यक है । तकों के बिना इनमें प्रभाविष्णुता नहीं झ्राती । १ माषरण--उदाहरण -- उपस्थित बहनों श्रौर भाइयों बड़ा हुषे है कि आपने इस महाविद्यालय के साहित्य-परिषद के चाधिक उद्घाटन के श्रवसर पर बुलाकर गौरवान्वित किया है । मैं भ्रधिक गौरव का झनुभव इस बारे से कर रहा हूँ कि श्रघिकारी लोग श्राज भी राज-




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