जैनमत समीक्षा | Jainmat Samischa

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Jainmat Samischa by शम्भूदत्त शर्मा - Sambhudutt Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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३ शक्ति बढाओ अठ धर्म से हटा साचेा समझे यदि आप कौ समभ में न आवे ता किसी विद्दान्‌ से ज्ञात करा यदि इठवशात्‌ आप कुछ भी नद्दीं कर सक्के है श्र तुम्हें यही आग्रह है कि जेनमत हो सत्य है ता आप सम्पूण जैनियों को ओर से एक सभा कमेटी नियत करे और उन सब में से प्रतिनिधि वनाओ उसके सड् प्रेम पूबंक परस्पर बैठकर शास्त्राध करा अन्य मतावल- स्वियों क/विद्दानों का न्यायाधोश करा न्याय युक्ति प्रमाण और बुद्धि के लेकर निणय करने के पथात्‌ पुन जिसका पक्त गिर जावे वह टूसरे पक्ष का प्रेस पूवेक स्वीकार करे हधा विललाप करने ओर भांडों को नकलों के सद॒श पुस्तकों के छपान आदि से काई भी अच्छा. न मानेगा भ्रीर न काई यह कहेगा कि झ्रा्यसमाज कौ आर से किये इए प्रश्नों का उत्तर यथावत्‌ दे दिया गया डे या वाममाग तथा चार्वाक्‌ और बौदद से अलग करके जैनमत का एधक्‌ ठहराया हा खामों दयानन्द जो को कुक जनियों से शत्रुता नद्दीं थी केवल परापकाराधे तुम का इस भयानक वाममाग नास्तिक जैंन मत से उन्होंने ता निकालना चाछा था परन्तु जिसके शिर पर भावी रूप कष्ट आन उपस्थित होता है उसे दूसरे का उपदेश ऑ्रेष् नछों लगता तुम भारतसन्तान डाकर भी ऐसी धार निद्रा में शयन कर रहे हो कि निरपन्न डाकर सत्शासत्य के निशेय करने में सवंधा असमर्थ हा यये हो




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