शिक्षा मनोविज्ञान | Shiksha-manovigyan.

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Shiksha-manovigyan. by हरचंद - Hrachand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ ४ 1 के नियमों के सम्यन्य में दिक्षा-मवोविज्ञान ने काफी परिमाण में सामग्री प्रस्तुत बार दी है। भ्रध्पापक उसमे लाभ उठा सकता है। उदाहरण स्वहप यह बात ग्रब प्रमाणित हो चुकी है कि यदि बालकों को चंविता शिलानो है तो घघनद्धति (८ 876 10910) के स्थान पर पूर्ण-पद्धति ( ४6 पु 016 ९५४०0) की भपनाना चाहिए । (३) सनोदिज्ञान द्वारा दिक्षा के उद्देदों को परीक्षा--मनोविज्ञान शिक्षाधियों के लिए कोई सदय निर्धारित नहीं बरता । लक्ष्य निश्चित करना दिक्षा का वार्य है। शिक्षा द्वारा निर्धारित सदयों की पूति करना मनोविज्ञान का बाप है। मनोविज्ञान के द्वारा इस प्रकार की विधियाँ प्रयोग में ताई जावेगी जिनगे हम उन लद्पी तक पहुंच गढ़ । साथ हो साथ गनोविशान यह भी देखता है वि बयां दस इन लेप को प्राप्त मी कर सतते हैं या नहीं । यदि नहीं तो बयों ? (६) दातवों के सानतिझ ह्दारष्प (तैटिए(5] लित्थ! १५) रा ध्यान रतना--पथ्यनहों में प्राय दगड्टालू, घोर शूठें तथा घपरराधी बागक है। ऐसे रद बालक सावतिग रप से घस्वहप हैं । जिस सध्यापक ने शिक्षा मनोवित्तान दए पध्ययन निया होगा वह ऐसे बालदों को सानसिक विडिस्सा (एप एप) पी. सटादता ये, फिर से रदस्य दना गरता है । यूरोप भौर रेषा के बई प्रगतिशील विदालयों में ऐसे विडिहपालपों (01०४) का घायोडन दिया गया है जहाँ सानयिय रूप थे पररवरप दालदों वी चिकिरेगा थी जाती है । (७) डालर दे पति सहानुभूति का साइ-- जिस धप्पापक ने मनो- विज्ञान दा भप्यपयन विदा होगा वह दालहों दे प्रति सहादुमूति बा साइ रगेगा नचहा हास्य नहीं होगा । वास धन बकर दर हा नहीं गरेगा। िश्ना--इटूग गे पंप परत दया हीनता मी भावना पेज इई 4 दस धप्पदग ददरप 1 तन के




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