गल्प सुमन | Galap Suman

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Galap Suman by रामबाबू अग्रवाल - Rambabu Agrawal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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5. पहचान सम्भाषण को स्वाभाविकता प्रदान करती है । उचित सम्भाषण पात्रों के चरित्र-निर्माण में भी सहायक होता है । भर. बातावरण--वह देशकाल भ्ौर परिस्थिति जो कहानी के पात्र के जीवन पर प्रकाश डालने वाली होती है कहानी का वातावरण कहलाती है। इस वातावरण की स्वाभाविक सृष्टि पर कहानी की सफलता बहुत कुछ अ्रवलम्बित रहती है। वातावरण को पृष्ठभूमि भी कहते हैं। घटनाएँ ठोकर मार-मारकर जीवन-रथ को श्रागे बढ़ाती हैं । पर घटनाएं शून्य में तो नहीं घटतीं । उनके लिए झाधार तो चाहिये ही । जल-थल-ग्राकादा जिन परिस्थितियों के बीच घटनायें घटती हूँ उनका वर्णन वातावरण कहलाता है। कहानी लेखक को थोड़े शब्दों में थोड़े स्थान के भीतर संकेत से देश-काल की विशेष तायें व्यक्त करते चलना चाहिये । श्रलभ से उनका विस्तृत वर्णन नहीं करना चाहिये । बीच-बीच में संक्षिप्त वर्णनों के द्वारा श्र श्रषिकतर पात्रों के सम्माषण श्रौर उनके क्रिया-कलाप द्वारा समय स्थान भ्ौर परिस्थिति का परोक्ष रूप से पता देते रहना चाहिये । किन्तु वातावरण कभी ऐसा न हो. जो स्वतन्त्र रूप से हमारा ध्यान भ्राकृष्ट करके कथा की गतिशीलती में ब्याघात उत्पन्न कर दे। प्रसाद की कहानी श्माकाददीप में वातावरण का चित्रण बहुत कुछ इसी कोटि का है । ६- भाषा-दली--प्रत्येक व्यक्ति का शब्दकोष तथा शब्दोच्चारण का स्वर दूसरे से भिन्न होता है। कहने के ढंग का ही दूसरा नाम शैली है । शैली ही कला की श्रात्मा है । जिस तरह सारे शरीर में प्राण का संचार है परन्तु वह एक जगह निकाल कर दिखाया नहीं जा सकता श्रौर जिस तरह गुलाब के फूल को चीर-फाड़कर उसकी खूशबू या खूबसूरती दिखाई नहीं जा सकती उसी प्रकार शैछी का स्वरूप भी अलग से दिखाया नहीं जा सकता । शैली कलाकार की उद्दीप्त प्रतिभा का कौशल है । वह उसके शब्द-शब्द में व्याप्त है । शैली ही श्रलंकार है । शैली ही रस परिपाक




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