भारतीय - आर्य भाषा और हिन्दी | Bharatiya Arya Bhasa aur Hindi

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Bharatiya Arya Bhasa aur Hindi by डॉ० सुनीतिकुमार चाटुजर्या - Dr. Suneetikumar Chatujryaa

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भारतीय झाये-भाषा का अनवरत इतिहास थ् प्राचीन श्रादिवासी नेम्निटो के जीवन का मुख्य भाग (विश्व के ्राद़ि काल के निवासियों के सद्श) केवल श्राह्वर-अन्वेषण में ही व्यतीत होता था क्योंकि इनमें पशु-पालन या कृषि इन दोनों का प्रवर्तन अब तक नहीं था और भारतीय संस्कृति के निर्माण में उसका कुछ भी हिस्सा नहीं हैं। वह या तो पूर्ण रूप से विलुप्त हो चुका है या कहीं-कहीं सुसम्य जाति के मानों से सदूर स्थानों में बचा रह गया है श्रथवा उसके चिह्नावशेष ऐसी जातियों में मिल जाते हैं जिनमें वदद घुल-मिल गया है । ॉस्ट्रिक एवं द्रविड़ जातियों से भारतीय समाज-ब्यवस्था एवं संस्कृति को कुछ मूलाधार-रूप उपादान प्राप्त हुए हैं । तिब्बती-चीनी जातियों का भी कुछ आंशिक श्वशेष दिमाचल के पाद-देश की तथा उत्तर-पूर्वीय भारत की जातियों श्र सम्भवतः उनकी संस्कृति में पाया जाता है। परन्तु इन सब विभिन्न उपादानों का सम्पूर्ण एकी- करण शारयों की उच्चकोटि की व्यवस्था-शक्ति के फलस्वरूप ही दो सका । कहीं- कहीं यद्द एकीकरण रासायनिक पूर्णता को पहुँच गया तो कहीं .केवल परस्पर के सम्मिश्रण तक दी सीमित रहा । परन्तु भारतीय जन-समुदाय की ऐति- हासिक घार्मिक श्र विचारगत विशेषताओं को लेकर बनी हुई संस्कृति के निर्माण में सबसे बढ़ा दाथ श्रार्यों की भाषा का रहा । ्ॉस्ट्रिक घर दविद़ों द्वारा भारतीय संस्कृति का शिलान्यास हुआ था श्र भायों ने उस झाधघार- शिला पर जिस मिश्रित संस्कृति का निर्माण किया उस संस्कृति का माध्यम उसकी प्रकाश-भरूमि एवं उसका प्रतीक यददी झार्यभाषा बनी ्ारम्भ में संक्ृत पाली पश्चिमोत्तरीय प्राकृत ( गास्थारी ) अधं-मागधी प्र श झादि रूपों में तथा बाद में हिन्दी गुजराती मराठी उ़िया बंगला और नेपाली थादि विभिन्न श्र्वाचीन भारतीय भाषाथों के रूप में मिन्‍न-भिन्‍न समयों एवं प्रदेशों में भारतीय संस्कृति के साथ इस भाषा का अविच्छेद्य सम्बन्ध बैँघता गया । केवल भारतवर्ष के झस्तर्गत ही झायं भाषा का लगभग ३१०० वर्ष पुराना विच्छि्न इतिहास उपलब्ध है श्र भारत आने के पूर्व लगभग ३००० वर्ष पहले का इतिहास कुछ घुघले रूप में ईरान ईराक तथा पूर्वी एशिया-माइनर में मिलता है। इसके भी करीब £०० या १००० वर्ष और पूर्व के इतिहास के बारे में प्राप्त भाषा-शाख्र-विघयक सामग्री के आधार पर कुछ निस्चित बातें जानी जा सकती हैं । ३००० या ३२०० सनू ई० पू० से लगा- कर झाघुनिक काल के 9६२० ई० तक श्ार्य-भाषा के विकास की निश्चित रूपरेखा बनाई जा सकती है कि किस प्रकार से वह धीरे-धीरे प्राचीन भार- लीय-श्रा्यं (प्रा० भा० झा ) मध्यकालीन भारतीय-थायें (म० भा० झा )




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