चित्रावली | Chitravali

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Chitravali by माया अग्रवाल - Maya Agarwal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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क् चिद्वली में सौन्दर्य निरूपण 49 गये हैं भारत में मीर अब्दुल वाहिद बिलयामी (1566 ई०) हुकायके हत्दीग तथा ईरान में फंज मुशिन का शानी (17 वी शताब्दी) कृत्त रसायले सिशयाकर इसी प्रकार के ग्रत्थ हैं जिनमें नख-शिख-वर्णन के प्रत्येक अंग-वर्णन का सांकेंतिक मर्थ प्रस्तुत किया गया है 1 नखशिख का साघनात्मक स्वरूप- उस्मान का नखशिख वर्णन वस्तुतः घौन्दर्य के प्रति सजगता का भाव है । इस सौन्दर्य विवेचन में जहां शारीरिक अंगों की अतिशय सौन्दर्य की कल्पना निहित है वही दूसरी ओर इनमें दर्शक या श्रोता के मत की विभिन्‍न प्रततिकियाएं भी विद्यमान हैं । इस सौन्दर्य को सृजान चिल्रा- घली के चित्न में देखकर परम सौन्दयं का ज्ञान करता है गौर उसे पाने के लिए लालाथ्ति हो उठता है । यह सौन्दर्य सुजान के हृदय मे प्रेम का वीजारोपण कर उसे सफी साधना की भर आकृष्ट करता है । उस्मान की यह सौन्दर्य कल्पना सफी-साधना क्षेत्र सें प्रेम की पृव॑ पीठिंका है । इस सौन्दर्य का प्राप्त क्करने का सौभाग्य केवल उसी प्राणी को प्राप्त है जो इसके लिए साधनात्मक प्रयास करता है । इस रूप में चिन्नावली को यही सौन्दर्य सूफी साधक सुजान के लिए साघना-मार्ग का भगम्य द्वार खोलने में सफल सिद्ध होता है । चिल्नावली का अतिशय सौन्दर्य सुजान के शावाकुल सन को शर्ते .-शर्ने साघनात्नक प्रयास द्वारा पार्धिव सौन्द्यं से अपा्थिव सौन्दर्य तक ले जाता है । इस अर्थ में चिद्ावली परम सौन्दर्य स्वरूप परम तत्व भले ही न हो किन्तु पूर्ण सौन्दर्य स्वरूप परमतत्व की उत्तम अनुकुति अवश्य है । सूफी कवि उस्मान ने शचिन्नावली के सौन्दर्य के माध्यम से परम सौन्दयं को आभास करते हुए उसे प्राप्त करने का एक सहज माध्यम बताया है। चिज्ञावली का यही अतिशय सौन्दर्य सुफी साधक सुजान के लिए मभिलापा वा केंद्र बनता है और उसके लिए सुस-मरीचिका बनकर साधना के रूप में विरहजन्य कप्टों में तपाता हुआ अन्त में चरम लक्ष्य तक ले जाता है । सूफी प्रेम-साघना का यही लक्ष्य परमानन्द का प्रतीक है । निष्क्पंत सूफो कवि उस्मा८ ने अपने नखशिख वर्णन मे सूफी सिद्धान्त का विवेचन करते हुए उसका सम्बन्ध परमसत्ता से जोडा है । उस्मान वा यह विवेचन परम्परागत सूफी शैली के अनुन्प है | 1. डॉ० श्याम मनोहर पाण्डेय सूफ़ी काव्य-विम्श पृ० 43 2. मीर अब्दुल वाहिद विलग्रामी--हकायके हिन्दी (अनु० संयद मतहुर अव्चाये रिजवी नागरी प्रचारिणी सभा क्षाणी सम्बत 2014 3. &ै. 5. ह0डाए उपाए हि. 113-114 (1956)




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