भारतीय आर्य भाषओं का इतिहास | Bharatiya Arya Bhashaon Ka Itihas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ६ ) सारस्वत और सिद्धान्त चन्द्रिका जैसे व्याकरण ग्रन्थो का अध्ययन किया । आधुनिक प्रणाली पर भाषाओं के अध्ययन की ओर अग्रसर करने का श्रेय हिन्दी के कतिपय ग्रन्थो को है जिनमे डॉ. उदयनारायण तिवारी कृत हिन्दी भाषा का उद्गम और विकास डॉ. बाबुराम सक्सेना कृत सामान्य भाषा- विज्ञान डॉ. धीरेन्द्र वर्मा कृत हिन्दी भाषा का इतिहास और डॉ सुनीति- कुमार चादुर्ज्या कृत भारतीय आयंभापषाएँ और हिन्दी आदि प्रमुख है । उक्त ग्रस्थो का मेरे भाषा जीवन मे जो योगदान है उससे मैं शायद ही उक्कण हो सकू । भाषाओं के अध्ययन के लिए प्रोत्साहित करते रहने का श्रेय डॉ. सरनाम सिह शर्मा अरुण को है । किसी भी विषय पर किसी भी समय विचार-व्मि्शं करने के लिए उनके द्वार मेरे लिए सदैव खुले रहते है। उसी का यह परिणाम है जिसके लिए मैं कृतज्ञ हूँ । मेरे लेखक जीवन का शुभारम्भ उन भाषा-वैज्ञानिक लेखो से होता है जो समय-समय पर हिन्दी की प्रमुख शोघध-पत्रिकाओ--नागरी प्रचारिणी पत्रिका शोघ-पत्रिका विश्वम्भरा सप्त-सिन्धु राजस्थान पत्रिका जनभारती रसवन्ती भादि मे प्रकाशित होते रहे है । मेरे लेखो को पढकर मेरे विद्वानू मित्रो ने मुझे इस विषय पर कोई पुस्तक लिखने का परामशं दिया जिससे मेरे विचार अधिक से अधिक लोगो तक पहुँच सकें । इसी बीच बी.ए. के छात्रों को भारतीय आये भाषाओ का इतिहास पढाते समय मुझे यह अनुभव भी हुआ कि हिन्दी जगत्‌ मे एक ऐसी पुस्तक की आवश्यकता है जो मौलिक होते हुए भी ऐसी शैली मे लिखी हुई हो कि एम.ए. और बी.ए. के छात्रों के लिए समान रूप से उपादेय हो और वे अपनी आवश्यकतानुसार सामग्री अत्यन्त सरलता से प्राप्त कर सके । अत पुस्तक लिखने का निश्चय कर उपर्युक्त प्रकार की रूपरेखा तैयार कर ली गयी । उक्त रूप रेखा को साकार रूप प्रदान करने मे मेरे अभिन्न मित्र डॉ. प्रभाकर शर्मा शास्त्री संस्कृत विभाग का जो अमुल्य सहयोग मिला वह मेरे हृदय की एक बहुमुल्य निधि बन गया है । समय-समय पर मिले आपके सुझाव तो महत्त्वपूर्ण थे ही साथ ही आपके सशक्त प्रूफ रीडिंग ने पुस्तक को अधिक निर्दोष बना दिया है । मेरे जीवन निर्माण मे मेरी स्वर्गीया घ्मेंपत्नी श्रीमती शान्ता कौशिक का बहुत बड़ा हाथ रहा । वह मेरी पत्नी ही नहीं एक मार्ग-दर्शिका भी थी । किशोरावस्था की वह मेरी जीवन-सणगिनी सदैव कहा करती थी कि अध्ययन काल मे सुख की आकांक्षा करना असफलता को आामस्त्रि करना है और अध्ययन तो अपने आप मे एक सुख है । मैं नहीं समझती कि इससे आगे भी




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