चीन का क्रन्तिकारी राष्ट्रनिर्माता डाक्टर सनयातसेन | Chin Ka Krantikari Rastranirmata Dactor Sanyatsen

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Chin Ka Krantikari Rastranirmata Dactor Sanyatsen   by विश्वनाथ राय - Vishvanath Ray

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ ६ स्त में विश्वास करते हैं । तब डाक्टर देर ने कहा कि आप . ईसाई क्यों नहीं हो ज्ञाते ? उत्तर मिला कि वह ईसाई हो जाने के छिये हर समय तैयार हैं । थोड़े दिनों के बाद सन- यातसेन ने ईसाई घम की दीक्षा ले छो । सनयातसेन दोनो- लुलु में ही अपने मित्रों के साथ ईसाई धर्म के सिद्धान्त को मान चुके थे और चीन में लौटने पर लु-हावो-टंग के संग से और शी प्रभावित हो गये । सनयातसेन ईसाई होने में घर चाठों के विरुद्ध ही थे । सनयातसेन ने कील्स कालेज में तीसरा, दूसरा और पहला दुरज्ञा क्रम से १८८६ तक समाप्त कर लिया था । सन्‌ १८८६ में बड़े भाई ने इन्हें दचाई में किसी कागज्ञ पर हस्ताश्सर करने की जरूरत से बुछाया । आाह-मी को उयोही यह बात मालूम हुई कि सनयात ने ईसाई धरम ग्रदश कर लिया है 'त्योद्दी एक पत्र घर भेजा कि चह अब रुपये घर न सेजेंगे जब तक सनयात ईसाई घम को छोड़ न देंगे । इसका कुछ भी असर सनयात के ऊपर नही पड़ा । चीनी ईसाईयों ने रुपये एकत्र करके सनयातसेन को पादरी बनाने को चेष्ा की । सन- यातसेन ने भी यदद ठान छिया कि बाइबल सिखलाना उनके जीवन का पक आवश्यक झंग है। जब सनयातसेन चीन से वापिस आये तबतक इनकी पढ़ाई पिछड़ गई और उस समय इन्हें पैसे की कमी मालूम पड़ी । डाक्टर देर ने इस समय उनकी काफी सदद को । होनोलुलु से छौटने पर सनयातसेन को अपने विषय में बहुत परेशान दोना पड़ा । डाक्टर हेजर ने छिखा है कि यदि




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