महाभारत (संस्कृत मूल ) | Mahabharat (sanskirat Mool)

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पाण्डेय श्री रामनारायण दत्त जी शास्त्री - pandey shri ramnarayan dutt ji shastri

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हनुमान प्रसाद पोद्दार - Hanuman Prasad Poddar

He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दानधर्मपचे |] पद्चादत्तमो 5ध्यायः प्ग्देदेर्‌ रथ वात तववलवतववमननकवकवननवनवनननवनवकववववविनिजञ एपपपपाााााााथाथाााााााायययययययाययायायसससटटडडडडडडडडअड-- न चास्य मातापितरो ज्ञायेतां स हि कच्चिमः ॥ २० ॥ भीष्मजी ने कहा--युधिष्टिर माता-पिताने जिसे रास्तेपर त्याग दिया हो और पता लगानिपर भी जिसके माता- पिताका ज्ञान न हो सके उस बालकका जो पालन करता है उसीका वह कत्रिम पुत्र माना जाता है ॥ झड़ ॥ मस्वामिकस्य स्वामित्व यस्सिन्‌ सस्प्रति लक्ष्यते । यो वर्ण पोषयेत्‌ू त॑ च॒ तद्र्णस्तस्य जायते ॥ र१ ॥ वर्तमान समयमें जो उस अनाथ बच्चेका स्वामी दिखायी देता है और उसका पालन-पोषण करता है उसका जो वर्ण है वद्दी उस बच्चेका भी वर्ण हो जाता है ॥ रु॥ युधिष्टिर उवाच कथमस्य प्रयोक्तच्यः संस्कारः कस्य वा कथम्‌ देया कन्या कथं चेति तन्मे श्रूहि पितामह ॥ २२ ॥ युधिष्टिरने पूछा--पितामह ऐसे बालकका संस्कार कैसे और किस जातिके अनुसार करना चादिये ? तथा वास्तवमें वह किस वर्णका है) यह केसे जाना जाय ? एवं किस तरह और किस जातिकी कन्याके साथ उसका विवाह करना चाहिये ? यह मुझे बताइये ॥ रर ॥ सीष्मस उवाच आत्मवत्‌ तस्य कुर्वीत संस्कार स्वामिवत्‌ तथा । त्यक्तो मातापितृभ्यां यः सबण प्रतिपद्यते ॥ २३ ॥ भीष्मजीने कद्दा--बेटा जिसको साता-पिताने त्याग दिया हैः वह अपने स्वामी (पाठक) पिताके वर्णकों प्राप्त होता है । इसलिये उसके पालन करनेवालेको चाहिये कि वह अपने ही वणके अनुसार उसका संस्कार करे ॥ २३.1) तट्ोचब्थुजं तस्य कुर्यात्‌ संस्कारसच्युत । अथ देया तु कन्या स्यात्‌ तट्र्णस्य युधिष्टिर ॥ २७४ ॥ धर्मसे कभी च्युत न होनेवाले युधिष्टिर पाठक पिताके सगोन्न बन्घुआँका जैसा संस्कार होता हो वैसा ही उसका भी करना चाहिये तथा उसी वर्णकी कन्याके साथ उसका विवाद मी कर देना चाहिये | रूँए ॥ ः खंस्कतु वर्णगोत्र॑ च॒ मातवर्णवित्तिश्यये । कानीनाध्यूढ जौ वापि विज्ञेयी पुत्र किल्बिषो ॥ २५ ॥ - बेठा | यदि उसकी माताके वर्ण और गोचका निश्चय हो जाय तो उस बाठकका संस्कार करनेके लिये माताके ही वर्ण और गोत्रको ग्रहण करना चाहिये । कानीन और अध्यूढज-ये दोनों प्रकारके पुत्र निकृष्ट श्रेणीके दी समझे जाने योग्य हैं ॥ २५ ॥। तावपि स्ाविव खुतों संस्कायौविति निश्चय । श्ेत्रजो वाप्यपसदो ये5ध्यूढास्तेषु चाप्युत ॥ २६ ॥ आत्मवद्‌ वै प्रयुज्ीरच्‌ संस्कारान्‌ घ्राह्मणादयः । घर्मघाख्रेषु वर्णानां . निश्वयो5यं प्रददयते ॥ २७ ॥ . एतत्‌ ते सर्वमाख्यातं कि भूयः श्रोतुमिच्छसि॥ २८ ॥. इन दोनें प्रकारके पुर्घॉका भी अपने ही समान. संस्कार करे-ऐसा दास्त्रका निश्चय है ।-्राह्मण..आदिको चाहिये कि वे क्षेत्रज ...अपसद..तथा. अध्यूढ-इन सभी प्रकारके पुंका अपने ही समान संस्कार करें । वर्णोके संस्कारके सम्बन्ध धर्मशास्त्रीकी ऐसा ही निश्चय देखा जाता है । इस प्रकार मैंने ये सारी बातें तुम्हें बता्यी । अब और क्या सुनना चाहते हो ? ॥ २६-२८ ॥ .. इति श्रीमहाभारते अनुशासनपर्वणि दानधघर्म पवणि विवाह घर्मे पुन्रप्रतिनिधिकथने एंकोनपब्चाशतभी 5ध्याय ॥४९॥ इस प्रकार श्रीमहामारत अनुशासनपर्दके अन्तर्गत दानघर्मपदमे दिवाहधर्मके प्रसज्ञमें पुत्र्नतिनिधिकथननिषय्क उनचातवों अध्याय परा हुआ | झ्त प्यारात्तमो5प्यायः कि गोओकी महिमाके प्रसज्जमें च्यवन मुनिके उपाखउ्यानका आरम्भ सुनिका मत्स्थोंके साथ जालमें फॉसकर जलसे बाहर आना युधिष्टिर उवाच द्धने कीदराः स्नेहः संवासे च पितामह | महाभाग्यं गर्वा चेव तनमे व्याख्यातुमदंखि .॥ १ ॥ युधिष्टिरने पूछा--पितामद्द किसीको देखने और उसके साथ रहनेपर कैसा स्नेह होता है? तथा.गोऑका माहात्म्य कया है? यह सुझे विस्तारपृवक बतानेकी कृपा करें ॥ सीष्म उवाच हन्त ते कथयिष्यामि पुरादृत्ते महादुते । चल नटुषस्प च खसवाद सहपरच्यवतलस्य च ॥ ने ॥ भीष्मजीनें कहा--मददातिजस्वी नरेश इस विषयसें मैं... तुमसे-सदर्षि ड्यवन और नहुषके संवादुरूप प्राचीन इतिहालका _बर्णन करूँगा ॥ २ ॥ पुरा. महर्षिदच्यंवनो भागवों भरतषभ । उदवासऊतास्म्भो वभूव से महावतः ॥ ३ ॥ भरतश्रेष्ट पूर्वकाठकी वात हैः भरगुके पुर महर्षि च्यवनने . मद्दान्‌ त्रतंका आश्रय ले जछके भीतर रहना आरम्म. किया ॥ ..




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