भारत भ्रमण खंड - ३ | Bharat Bhraman Khand - 3
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11.88 MB
कुल पष्ठ :
246
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)३१ गया-१८९३ ( दूरु७ रेखवे स्टेशनसे ए३े मीछ पूर्वोत्तर पुरानी गयाक उत्तरका फाटक और ९ मील फल्गूके बायें विष्णुपदका मन्दिर है । -पुरानी गयाका खास शहर जिसमें गयावाठोके मकान हैं -कहगू न्दकि पश्चिम किनारेपर उत्तरसे दक्षिण मीक ठम्ना और पूर्वसे पश्चिम ३ मीछ चीड़ा है । उसके चारों दिशाओँसें ४ फाटक हैं । मकान पुराने ढाचेके चौमेंजिठे पथ्थ -सजिले तक बने हैं । उत्तरके फाटकसे दृक्षिणके फाटक तेक गच्च कीहुई एक सड़क है । डेंत्ची नीची भूमिपर दाहर वसा है । जगदद जगह पथरीढी जमीन है । फलयुके किनारेपर न्रद्यानी - घाट गायत्री घाट बुआ घाट सोमर घाट जिह्लालेल गदाघर घाट आदि हैं । पश्चिम फाटक़से बाहर एक -उड़क उत्तरसे दाक्षिण गई है जिसके पश्चिम वगठुपर पश्चिम फाटकसे कुछ दक्षिण रामसागर मह्ेमं करीब १८५ गज ठम्बो और इससे आधेखे अधिक गौड़ रामसागर नामक ताछाव है। जिससे दक्षिण चात्दुचौरा वाजार है । गयासे पूर्व फल्गूके दहिने किनारपर नगकूद पहाड़ी दक्षिण-पश्चिम भस्मकूठ ( जिसको छोग मुरती पहाड़ी कदत हैं. इसके शिरपर एक मन्दिर देख पढ़ता है ) और अह्ायोनिकी पद्दाड़ी उत्तर साइनगंजके बाद रामाशिछा पहाड़ी और पाश्चिमोतर प्रेताशिला - पद्दाड़ी देख पड़ती है । गया श्राद्धके छिये भारतवर्षमें प्रधान है । वहाँ प्रतिदिन श्राद्ध करनेके लिये यात्री सहुँचते हैं किन्तु आश्विन मासका कृष्णपक्ष गया श्राद्धका सर्च प्रधान है । उस समय भारत-- ब्के श्रत्यक विभागोंक्े छाखें यात्री गयामें भाते हैं । और धनी छोग गयावाठ पण्डॉको बहुत दश्धिणा देते हैं। गयाके पण्डरॉमें बढ़ेवड़े धनी हैं । आश्यिनके वाद पौप और चैन्नके कृष्ण-- पक्षमें भी बहुत यात्री गयामे पिण्डदान करते हैं । भाद्धके स्थान और विधि--( १ ) पूर्णिमाके दिन फल्यु नदीमें एक वेदापर खीरका श्राद्ध तर्पण और पण्डाकी चरण पूजा होती है. । फल्गू नदी गये पूर्व बहती हुई दक्षिणेसे उत्तरको गई है । फल्गूका विशेष माह्दात्म्य नगकूट और भस्मकूटसे उत्तर और उत्तर-मानससे दक्षिण है । नगकूटसे दृक्षिण फल्गुका नाम महाना है । गयासे ३ मीछ दक्षिण नोछांजन नदी दृहिनिेसे आकर सद्दाना नदीसें सिठी है । संगमसे करीब १ मीछ दक्षिण सरस्वतीके मन्दिरितक इस नद्दीका नाम सरस्वती दे । मधघुश्रवा नामक एक छोटी नदी दृक्चषिण-पश्चिमसे आकर गयाके दक्षिण मद्दाना ( फल्यू ) नदीमें मिली है जिसकी धारा बरसावके वाद फल्यूसे अछग होकर गदाधरके सन्दिरके नीचे बदती है । बर्पीकालके अतिरिक्त दूसरी ऋतुऑमें फल्यू नदीमें पानी नद्दीं रहता परन्तु नाल खोदनेपर साफ पानी सिछ जाता. है ।नदीमें पानी रने परभी छोग वाकू हटाकर स्वच्छ पानी छेजाते हैं विष्णुपद्के पूरे फल्युके ददिने किनारेपर नगकूट पहाड़ी वाँये किनारेपर भस्मकूर पहाड़ी और विप्णुपद्से ठगभग- १ सीछ उत्तर उत्तरमानस नामक सरोवर है । (२ ) छष्ण प्रतिपदाके दिन ५ वेदीपर पिंडदान करना होता है रामशिला रामकुण्ड .. भतदिला श्रह्मकुण्ड और कागवल्ति । रामदिठा और शमछुण्ड-विप्णुपदके मन्दिरसे करीब . ३ सीछ साहवगशके पासददी उत्तर फल्पूके पश्चिम किचारेपर रामशिला पद्दाड़ी है जिसके पूर्व वगठके नीचे दीवारसे चरा हुआ ब्रह्ककुण्डसे बहुत बड़ा रामकुण्ड नामक ताछाव है। यात्री गण श्रेतशिठासे ठौटनेपर इसके किनारे एक ध्रेद़ीका पिंडदान करते हैं और पीछे
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