तांत्रिक बौद्ध साधना और साहित्य | Tantrika Bauddha Sadhana Aur Sahitya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६. जिसमें बोधि क्रमशः श्रंत में सिद्धावस्था में सम्यक्‌. संबोधि को प्राप्त करता दे । पारमिता की साधना बोधघिसचत्र की विभिन्न भूमियों में होती है । प्रयमं सात मूमियों में प्रयोग श्रशुद्ध सापेक्ष श्रौर श्रभिसंस्कारयुक्त होता दै। प्रथम छः मूमियों में समाधि के श्राभोग श्रौर निमित्त नाम के दोनों कारणु- तत्व रहते हैं किंतु सप्तम भूमि में यद्यपि निमित्त नहीं रहता तथापि श्राभोग रददता है। श्राठवीं भूमि श्राभोग से भी मुक्त रहती है। इसीलिये इसे झुद्धभूमि कहते हैं जिसमें समाधि को श्रपने उदुबोध के लिये न श्राभोग की श्रावद्यकता रददती है न निमित्त की । इन स्तरों पर समाधि श्रागठतुक न द्दोकर प्राकृतिक स्वरखबाह्ी दो जाती है | केवल इसी प्रकार की समाधि से नगदथतंपादन संभव है श्रौर इसी से कोई ययाथ सर्वानुशासक भी हो सकता है । यह श्रवत्या दसवीं भूमि तक. रहती है । इस उच्च साधकावस्था का श्रारंभ बुद्ध के मारविजय से द्ोता हे तथा श्रंत दल -पारमिताश्रों की पूर्णतता श्रोर सच वरित सहज वज़ोपमसमाघि की प्राप्ति से दोता है | इस दृष्टि से सिद्धि की श्रवस्था ग्यारदवीं भूमि की दे। यह पूर्ण शान श्र पूर्ण क्लेशच्षय की एक स्थिति है। इसके श्रनंतर सत्वाथक्रिया का श््रागम द्ोता है जो सिंद्ध जीवन का सुख्य उद्देद्य है। यह घ्मचक्रप्रवतन से अभिन्न है । सत्यज्ञान के लिये बुद्ध का यदद नेसर्गिक सेवाकाय उनके. श््राध्यात्मिक शासन के अंत तक रहता दे । १5% तांत्रिक साधना की बहुत सी दिशाएँ हैं । इस साधना का मुख्य लक्ष्य दे बिंदु सिद्धि । बौद्ध तांत्रिक परिभाषा में बिंदु ही बोधिचित नाम से प्रसिद्ध है मनोमयकोष का सारांश मन है । प्राणमयकोष का सारांश प्राण या झोजत है तथा श्रन्नमय कोश का सारांश वीय॑ या झुक्र घाठु दे । अज्ञानी




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