शिवगीता | Shivgeeta

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Shivgeeta by पं ज्वालाप्रसाद मिश्र - Pn. Jvalaprsad Mishr

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मापाहिकासपम्रेत ( रू 3 इसी प्रकार ज्ञानवान्‌ ब्राह्मण देवताओंकों . दुःखदाताही है कारण कि. वह कर्म नहीं करता इस कारण इसके विषय गार्या पुत्रा- दिमें प्रवेश करके देवता विज्न करतेहें ॥ १९ ततों न जायते यक्तिः शिवे कस्वाएिं देह ॥ तस्मादविदुवां नेव जायते झुलपाणिनः 0१ है॥ इससे किती देहधारीकी शिवमें भक्ति नहीं होती इस कारण मूर्खोको शिवका प्रसाद नहीं मिलता ४ १३४ ॥| यथाकर्थचिलातापि मध्य विच्छिद्ते रृणाम ॥ जाते वापि शिवज्ञानं न विश्वास भजत्यलमु३ ४ और जो यथाकथश्रितू जानतामी है वह किसी कारण सध्य- मेंही खंडित हो जाता है भीर जो फिसीको शान हुबामी तो घट विश्वाससे सहीं मजता ॥ १४ ॥. नऋुषय ऊउचु । युश्नेव देवता विज्ञपाचरन्ति तदूशतामू ॥ एरएं तत्र कस्यास्ति येन सुक्तियंविष्यति १८। ऋषि बोले जब इस प्रकारते देवता दारीएबार्योंकों विश्व करतेहैं तो फिर इसमें किसका. पराक्षत है जो. मुक्तिफो प्राप्त होगा ॥ १५ |




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