शिवसंहिता | Shivasanhita

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मधमपटल । (११ मूलम-पापयोगावसाने हु पुनर्जन्म मे तखढ़ ॥ पुण्यपोगावसाने हु नान्यथा . मवति शुवसू॥ २७॥ . टीका-पापका फू भोगनेके पीछे अवश्य फिर जन्म दोतारे ऐसेही पुण्यफल भोगनेके अंतमें निश्चय फिर जन्म होता है अन्यथा नहीं होता ॥२७॥ ५ ५ मूलम-स्वगपि हुसंभोगः परखीदशना डवम ॥ ततो हुम्खामिदू सर्ें भवेज्ञास्त्यत्र संशयः ॥ २८ ॥ टीका-स्वगपेंभी दुःख है इस कारणसे कि उस स्थानमें परख्रीका दर्शन अवश्य होताहे उसकी अग्रा- तिमें मानसिक व्यथा उत्पन्न होतीहै अन्यथा भी राग- देषादि बहुतसे कारण हैं कि प्राणीके चित्तकों स्वर्गमें भी स्थिर नहीं रइने देते इस हेत॒ये संसारमें सिवाय. दुःखके सुख नहीं है ॥ २८ ॥ . मूलभ-तत्क्मंकटपकेंः प्रोकं पुण्य पापमि ति दिपा ॥ पुण्यप्रापमयों बन्धों देहिनां मवति क्रमात्‌ ॥ २९ ॥ दीका-बुद्धिमान्‌ लोगोंने पुण्य और पाप दो प्रकारक




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