ब्रह्म - संहिता | Brahm-sanhita

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Brahm-sanhita by जसराज वैद - Jasaraj Vaid

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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स्त्री से कदने लये कि मद्दाराज मेरी यद्द प्राथदा है थि आप सच योग्य हैं इस से प्राणियों पर उपकार करो क्योंकि उपकार के लिये ही भगवान को चारम्वार अवतार रूउ धारण करने पडे इसी लिये आप भी प्रथ्ची पर जाकर काशी पति काशी के राज्ञा द्ोकर रोगों क्षी शान्ति के दिव्‌ आयर्वेद ना प्रकाश करो इन्द्र का यह वचन खुबकर शी घत्वन्तरी का श्वतार काथी के राज्ञा इुबे तब चबिश्वा मिड ने अपने पुत्र को आह दी कि चद्द काशी के राजा दीचोदास जो घन्व- न्तरी का अवतार है उन से पढ़कर मनुष्यों के दिन के हेतु आयुर्वेद का प्राय करो । जय चिश्वामित्र के पुत्र पिता की जाज्ञा अनुसार काशी राजाके पास ज्ञाकर सायुर्वेद को लाइर से ध्यान पूर्वक श्रचण किया इसी लिये इन की चुश्चुत के नाम से दिपषिशण लग गया ओर इन के बनाये इुबे अन्ध का नाम भी खुधत पडा फिर इन्होंने सायुवंद को अन्य ऋषि चालर्को को भी पढ़ाया यद्द आयुवंद का एई का इतिहास है अब दमारे सामने स्वभाविक्ष यह विचार उत्पन्न होता है नि चेत्रायुय में जायुवद के सुख्य दो आचाये हैं। भारदाज और काशी पति दीदोडास परन्तु इन दोनों का चनाया हुवा कोई अ्न्थ आज की दाताब्दी में नदी हैं लेकिन इनके झन्य शिष्यों में एक तो खुछुत के वनाये इुबे झन्थ को खुश्त सदिता कहते हैं वदद उपलब्द हैं परन्तु इस में भी बहुत से मतों का सन्देद है कि यद्द अन्थ स्रास सुश्चुत पणित श्न्थ नदी है बढ़े कहते हैं कि नाया अजेन नाम के सिद्ध का




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