हुमायुनामा | Humayunama

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Humayunama by ब्रजरत्न दस - Brajratna Das

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ७ ) झ्ात्म-हत्या कर ली, इन सब घटनाओं का बेगम ने पूरा पूरा वर्णन दिया है। १६ माचे सन्‌ १५२७ ईं० के। कन्हवा युद्ध में बावर ने .विजय प्राप्त की जिसका समाचार काबुल भेजा गया था । काबुल उस समय बेगमों से भरा हुआ था श्रौर वहाँ की सिर्ज़ा कामराँ के अधीन होने के कारण उन लोगों सें कुछ अशांति फैल गई थी जिसका वृत्तांत ख़वाज: कलाँ ने एक पत्र सें लिखकर श्रौर बहुत कुछ दूत द्वारा कद्दलाकर बावर पर प्रकट कर दिया । वावर को यह पत्र ६ फरवरी सन्‌ १५९८ ई० को मिला जिसका उत्तर ११ फरवरी को भेजा गया था । इसीके साथ या झुछ समय अनंतर उसी वष बेगमेां को भारत झाने की आज्ञा मिल गई । सबसे पहले सच १५२ ई० के जनवरी मद्दीने में माहम बेगंस शुलबदन बेगम को साथ लेकर जा उस समय छ वर्ष की थी, भारत को रवान: हो गई । शुलबदन 'बेगम ने इस यात्रा के केवल अंतिम भाग का वर्णन किया है । वह १४ फरवरी को सिंध नदी पर पहुँचीं जिसका समाचार . बाबर को गाजीपुर में १ अप्रैल को मिला था। २७ जून को अद्ध रात्रि में वे झागरे पहुँचीं जहाँ बाबर ने कुछ दूर पैदल जाकर . उनका स्वागत किया श्रौर वे पैदल ही मदद तक साथ झाए । गुलबदन बेगम दूसरे दिन आगरे पहुँची घ्नौर वहाँ उसका जैसा स्वागत हुआ, वह उसीकी पुस्तक में पढ़ने योग्य है । बाबर ने चार वष के अरलतर अपनी खियों घ्नौर पुत्रियों में से इन्हीं दोनों हर जा है है कि




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