मेघनाद - वध | Meghanad - Vadh

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Meghanad - Vadh by मधुप - Madhupमाइकेल मधुसूदन दत्त - Maikel Madhusudan Datt

लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :

मधुप - Madhup

No Information available about मधुप - Madhup

Add Infomation AboutMadhup

माइकेल मधुसूदन दत्त - Maikel Madhusudan Datt

No Information available about माइकेल मधुसूदन दत्त - Maikel Madhusudan Datt

Add Infomation AboutMaikel Madhusudan Datt

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
निवेदन द्ू साँस समे मौन संमवाती क्यों न देत आली यहाँ अन्त में दो गुरु अक्षरों वाला आली शब्द है इस लिए लेखक की राय में यहाँ चरण का अन्त सान लेने सें कक्कार ठीक नहीं रहती मालूम होता है भागे कुछ और कहना चाहिए । इसी कारण धट्ुघा कवियों ने ्चरणान्त में ऐसा रूप नहीं रक्‍्खा हे । जब उन्हेंनि वरण का उत्तराद्धं १६ समक्तरों का रकता हे तब्र या तो अन्त में दो अक्षर सघु रक्‍्खे है या एक गुरु और एक घु । जैसे-- चारिये नगर और औरछे नगर पर । और-- ऐसे गजराज राजे राजा रामचन्द पौरि । केदवदास । मोर वारी बेसर सु-केसर की आड़ वह । सर-- सौंरन की शोर भीरु देखे सुख मोरि मोरि । देव । सनुवादक ने जहाँ १६ अच्चारों के रूप से नये ढंग से इसका प्रयोग किया है वहाँ ऐसा ही किया है। नीचे पलासी के युद्ध से दो उदाहरण दिये जाते हे-- अबछा-प्रगट्भता क्षमा हो देव जो हो फिर भीति होती हो तो में दिखाऊँगी कि--थो हो फिर 1 और-- होंगे यदि पापी के शरीर में सहख्र श्राण ) तो सी नहीं पा सकेगा सुमसे कदापि श्राण । परन्तु ध्रुव महाशय ने इस नियम की अपेक्षा नहीं की । उन्होंने




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now