अंतर्राष्ट्रीय ज्ञानकोष | Antarrashtriya Gyankosh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अतिरिक्त लाभ-कर अणे साधव श्रीहरि--भारत के वाइसराय की एक्परीस्यूरडिय कॉसिल के भारतीय प्रवास-विभाग के सदस्य । शिक्षा--बी० ए० एलएल० बी० | आप लोकमान्य तिलक के सहयोगी रहे। दोमरूल श्रान्दोलन में श्रग्रगण्य भाग लिया । सन्‌ १६२८ में मराठी-सम्मेलन के आरध्यक्ष चुने गए। आप मराठी के श्रेष्ठ वक्ता तथा लेखक हैं। असहयोग ( सच्‌ १६२०-२१ ) तथा सविनय-्रवज्ञाभंग ( १६३०-३२) के आन्दोलनों में प्रमुख भाग लिया । भार- तीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सन्‌ १६३३ में स्थानापन्न राष्ट्रपति रहे । नेहरू-कमिठी के सदस्य थे। सन्‌ १६३४ में साम्प्रदायिक-निणय ((060एएएएए781] ै फ़ावात ) के प्रश्न पर कांग्रेस की तटस्थता-नीति के विरोध मे श्रापने काग्रेस की काय-समिति से त्यागपत्र दे दिया । सन्‌ १६३४ मे ही श्री |. प० मदनसोहन मालवीय के सहयोग से त्रापने £ कांग्रेस-राष्ट्रीदल की स्थापना की और उसी साल केन्द्रीय घारासभा के सदस्य चुने राए | आप केन्द्रीय असेम्बली में कांग्रेस नेशनलिस्ट पार्टी के नेता बनाये गए । जुलाई १६४१ मे वाइसराय की कार्यकारिणी का विस्तार हुआ तत्र लाड लिनलिथगों ने ही आपको अपनी कार्यकारिंसी कौसिल का सदस्य नियुक्त किया । अतिरिक्त लाभ-कर--युद्ध आ्रादि श्रवसरों पर पंजीपति द्रनुचित मुनाफे से झ्पनी पंजी ब्रढ़ा लेते हैं । चीज़ों को महंगे मूल्य म वेचते हैं। युद्ध के लिए सामग्री भी वे ही तयार करते हूं तथा जनता के लिए द्ावश्यक वस्तुद्नों का निर्माण भी वे ही लोग करते हैं ओर अपने माल को मनमाने दामों पर बेचते हैं । युद्ध के समय राज्य को अपनी रक्षा के लिए विशेष तेयारी करनी पड़ती है । श्रतः राज्य-कोप मे वृद्धि के लिए जिन करों की व्य- वस्था-सरकार करती हैं उनमे से एक अतिरिक्त लाभ-कर ( फिमिट€55 पिएपि। पु ) भी है । यह कर पंजीपतियों पर लगाया जाता है । उन्हे व्यापार में




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