गुप्त - साम्राज्य का इतिहास खंड - १ | Gupt - Samrajya Ka Itihas Khand - 1

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६२ गुग्त-साम्राज्य का इतिहास ये शक लोग केवल भारत के बाहर से--मध्य एशिया से--आये थे । पहले ये बडी ही साधास्ण स्थिति के थे । परन्तु धीरे धीरे इन्होंने अपने प्रबल बाहुबल से अपने राज्य का विस्तार कर लिया । भारत के उत्तरी पश्चिमी भाग तथा काठियावाड पर इन्होने अधिकार कर लिया । ये हिन्दूधम हिन्दू सस्झति तथा सभ्यता के कट्टर विरोधी थे। इन्होंने श्रपने राज्य में घोर अत्याचार मचा रक्‍खा था । अत्याचार के मारे प्रजा का नाके-दम हे गया था। प्रजा के करुण क्रन्दन तथा पीड़ितों के आर्तनाद से श्राकाश फटा जाता था। जहाँ भी ये गये वहीं इन्होंने हिस्दू- धर्म के नाश करने का केवल उद्योग ही नहीं किया बल्कि सब प्रकार से प्रजावर्ग के सताकर बड़ा कुदराम मचा दिया । भागवत तथा विष्णु पुराण में इन म्लेच्छ शकों के अत्याचार का निग्न प्रकार से वर्णन मिलता है --ये अनियमित टैक्स लेते थे। प्रजा के असख्य कष्ट देकर ये उन्हें खूब ही सताया करते थे । पुराणों में लिखा है-- प्रजार्ते भक्तयिष्यन्ति म्लेच्छा राजन्यरूपिणु | वस्तुत। उपयु क्त कथन अक्तरश। सत्य है। इन्होंने प्रजा का भक्षण करना ही पना कतंब्य समक लिया था । ः कहाँ तक कद्दा जाय भारतीय ख्रिये का सर्तीत्व भी सुरक्षित न रह सका तथा किसी पतित्रता के पातित्रत घम के नष्ट करना इनके बायें हाथ का खेल था ।. भारतीय स्त्रिया के सतीत्व की क्रीमत इन्होंने बहुत ही कम ऑकी थी । दुधमु हे बच्चे भी इनकी कठोर कृपाण के शिकार होने से नहीं बचे । भारतीय इतिहास में अबलाओं तथा बालकों की उशस हत्या का कभी भी पता नहीं चलता परन्तु इन दुष्ट नृशस अस्याचारी शुको के राज्य में यह रेज़मरां की बात हे गई थी ।. परम पुनीत गौ माता की हत्या भी एक साधारण बात हो गई थी ।. राग-दघ-रहित वीतराग ब्राह्मण भी इनके अत्याचार से नहीं बच सके । इन्होंने ब्राह्मणों की ख्त्रयि और पराये धन पर भी हाथ साफ किये। पुराणों ने इनके इसी घनघोर अत्याचार के लक्षित करके लिखा है-- स्त्री-बाल-गो द्विजन्नाइच परदारघनाहता१ | यद कथन वस्तुत. ढीक प्रतीत होता है । इनके दीघंकाय कृष्ण नेत्र तथा भयडर मुखाकृति के देखकर ही प्रजा के हृदय मे आ्रातक्ड छा जाता था |. गो ब्राह्मण- हिसक इस जाति के प्रभाव से प्रजा सच्नस्त थी हिन्दूधर्म धीरे धीरे क्षीण॒ होता इुश्रा कराल काल के गाल में प्रवेश कर रहा था हिन्दू सभ्यता तथा सस्कृति विलय के गर्भ में घुसी जाती थी हिन्दू स्त्रियि के सतीत्व का मूल्य जब कुछ भी नहीं था तथा जत्र समस्त प्रजा श्रत्याचार से ठण्डी श्राहि भर रही थी ऐसे ही श्वसर पर प्रबल पराक्रमी सम्राट विक्रमादित्य का उदय हुआ । इन्होंने अपनी शक्तिशाली भुजाओ के ज़ोर से इन शको को उसी प्रकार से मार भगाया जैसे प्रचण्ड सूय सूचीभेद्य तम की राशि के मार भगाता है। इस वीर ने इन कुटिल शको की उच्छू ज्लता _ का नाश कर उन्हें विनीत होने का पाठ पढाया। इस प्रकार शको के झपने प्रताप से सतप्त कर उनके मद के चूण कर उसे धूल में मिला इसने पीडित प्रजा के सॉस लेने का अवसर दिया । इसने सब्र शान्ति की स्थापना की तथा कुछ ही




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