भारतीय भाषा विज्ञान | Bharatiya Bhasha Vigyan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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व | रोटी-पूढ़ी से भागे भी म्रयोग-विधि. मेहूँ . की । भाँति-भाँति की सिठाइयाँ भादि बनती हैं स्वाद को. बहुत .वढ़ा देती हैं । तब पाक-कला यह कहलाती है । एक से बढ़िया दूसरी चीज वनती चली जाती है पर रोहूँ-चने वे ही । यों साधारण म्रयोग से बहुत आगे बढ़ कर एक कलात्मक प्रयोग होने लगता है पर वह कला सब को नहीं आती । सीखने से भर सतत अभ्यास से आती है. और बढ़ती- सँचरती रहती है । इसी तरह दाब्द-प्रयोग की कला है । उस कला से वाक्य काव्य बन जाता है । काव्य-कला का विवेचन-झिक्षण ही साहित्यदाख है । हम भापाविज्ञान की चर्चा कर रहे हैं । इस पुस्तक का नाम हैः-- भारतीय सापाबिज्ञान इस में भारतीय पद्धति पर शारतीय भाषाओं का संक्षेप से विश्वेपण- विवेचन है । एक तरह से इस विपय की यह उपक्रमणिका है । आगे इस का विस्तार हो गा। अभी इस का परीक्षण भी होना है -- सेरे द्वारा थी भर भापाविज्ञाच के पण्डितों के द्वारा भी । यों इंसे भारतीय सापाविज्ञान का प्रारूप भी कह सकते हैं । अगले संस्करण में चीज पक्की हो जाए गयी । तभी विस्तार भी ठीक रहें गा । अभी तक हिन्दी में भापाविज्ञान की जो पुस्तकें निकली हैं सब पाश्चात्य पद्धति पर ही हैं । यह पुस्तक अपनी भारतीय पद्धति पर है | इस में भापषा-भेद के जो कारण बतलाए गए हैं अपनी विशेषता रखते हैं। सापाओं का वर्गीकरण भी एक विदेष पद्धति पर हुआ है । भारत की सभी भाषाओं को सात प्रमुख वर्गों सें विभक्त कर दिया गया है-- १--पूर्वी वग॑ --- वगला उड़िया असमिया र२-पश्चिमी वर्ग -- राजस्थानी गुजराती सिनधी दे--उत्तरी वग -- कौरवी ( खड़ी वोठी ) वॉँगरू ( हरियानवी ) पंजाबी ४-मध्यवर्ती वर्ग--घ्रजभाषा पाज्चाली . अवधी .. भोजपुरी मगही मेधिली ( इस मध्यवर्ती चर्ग को पूर्वोसिमुखी चर्ग समझिए 1 )) नरभा० बि० भू०




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