पाप | Paap

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Paap by के. कुमारेन्द्र - K.. Kumarendra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १७ ) कहीं दुर जायें । जिसके लिये जिसके. । पैसा एक श्रावस्यक तत्व था । छोटा उसके श्रभाव में छोटा था श्रौर बड़ा श्रपनी ऊंचाई की चरम सीमा की थ्रोर बढ़ना चाहता था । रह रह कर कुमार के हुदय में एक टीस सी उठने लगी जिनके खुन श्रौर पसीने की कमाई इन रियासतों की नींव मैं लगी है पन्हीं के बच्चों की थे दशा यह पतन वह बड़बड़ा घठा-- यह अब नहीं हो सकता दाफीक रामगढ़ में स्कुल खोलना ही होगा--- किसी भी प्रकार किसी भी मूल्य पर इन रियासतों के सामने हुम मुक नहीं सकते । शफीक को रक्त खौल उठा जोश में यह बोला--कषपालसिंह ने कहा था कुमार--- घारा की ठेठे हाथों से श्रभी गई नहीं हैं श्रौर स्कूल खोलेंगे । चास की ठेठे 1 कुमार गुर्रा उठा--इन ठेठों से तो. तुम्हारा चेभव पपा है यह ने होती तो तुम भी हमारी तरह न होते ? खर अब इनका श्रपसान तुम श्रधिक नहीं कर सकोगे । हमसे तुम्हारा सन बढ़ाया था हुम ही उसे वापिस लेंगे । लेकिन भय्या सुरेदा ने बीच थे उसे रोका--- कुछ लेकिन वेकित नहीं सुरेश मैं स्वयं स्कूल में पढ़ाऊंगा । फिर तो मास्टर की श्रावश्यक्ा ने रहेंगी । फिर वाफीक हुए से उछल उठा--पुम हमारे साथ रहो तो फ़िर तो हुम सब कुछ कर सकोंगे । मी अरब यहीं रहूंगा शफीक । कुगार बोला-- कल ही से हम लोग श्रपना कार्य प्रारम्भ कर देंगे ? बीती कहानी सुन झाँखों मैं श्रांसू थ्रा जाते हैं खोई चीज पावर हुदय एक श्रेत्यधिक पुलेक-बेदमा का श्रतुभव करता है वही श्रतुभव गांव के इन तरुणों से कुमार की बात सुन कर किया श्रौर गांव की श्रोर चल पढ़े ।




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