साहित्य निबन्धावलि | Sahitya Nibandhawali

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Sahitya Nibandhawali by राहुल सांकृत्यायन - Rahul Sankrityayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बर्माकि भारतीयोंका कर्चव्य हर श्र नदियोंको केकर कहानी लिखें। जिन्होंने कविका हृदय पाया है वे खण्डा-पुल ( गोटकबूज )के समीपवर्तती स्थानोंके सौंदर्यकी वर्णना करें । देशमें लॉगोको श्रवगत करानेके लिये यदद बड़ा श्रच्छा साधन है । यदि प्रवासी भारतीय लेखक साहित्यके इस आवश्यक अज्ञकी झोर ध्यान दे श्र था कलम इधर चलायें तो देशवासी और प्रवासी दोनोंको दी बहुत लाभ 1 रगूनके भाइयोंके ऊपर खास जिम्मेवारी है क्योंकि यददाँके भारतीय बिद्या और धन दोनोंमें ही बड़े हैं । बड़े-बड़े नगरोंसे दूर-दूर बसनेवाले भाइयोंके प्रति उनका खास कत्तंव्य है । पता लगा है दूर-दूरके गाँवोंमें किंवनी नगद एक-एक गाँवमें काफी संख्या भारतीयोंकी पायी जाती है | लेकिन उनके लड़कोंके पढ़ने-लिखनेका कोई प्रबन्ध नहीं है । श्राप लोगोंको चाहिये कि उनके इस काममें सददायक बनें । अपके पड़नेसे उन्हें सरकारी सहायता तथा दूसरी सुविधायें झासानीसे मिल जायेंगी । हमारे भारतीय माई बर्मामिं श्रपने भविष्यके लिये बहुत चिन्तित हैं। मारतीयोंने कुछ ऐसे व्यवसायोंको दाथमें लिया है जिनसे न्न्मदेशीयों पर न्याय होता है । ऐसे व्यवसायवालोको हानि पहुँचनेकी संभावना जरूर है । शेकिम तब भी भारतोय यदि ज्रह्देशवासियोंके प्रति सहानुथूति श्रौर सश्चा बंधुत्व स्थापित करें तो उनको हानि नददीं पहुँच सकती । भारतीयोंमें यदि सो सवान्सी ऐसे सुशिक्षित झ्ादमी मिल जायें जो श्रह्मदेशीय भाइयोंकी सॉस्कतिक और श्राथिक निर्वलताश्योंमें सद्दायता देनेफे लिये तैयार हों वो दोनों जातियोंकी घनिष्ठता बहुत बढ़ जायगी । बर्माके भारतीयोंने मिचुश्योंको हिन्दी पढ़ानेकरा अबन्घ किया है यद श्रच्छी बात है। वे इस घिषयमें श्र भी झच्छा कॉम कर सकते हैं यदि अह्मदेशके मितुश्रोंके केन्द्रोंगें --जैसे माँइते सगाई पकोको हेनजडा र्यून श्रादि स्थानों--में एक-एक मारतीय पं डितको संस्कृत पढ़ानेके लिये दे सके । हाँ पणिशत ऐस। होना चाहिये जिसके सामने कचा ादश हो। संस्कृतमें वौद्धोंके कितने हो न्याय श्रोर दरशंनकें अन्य हैं झच्छा पढ़ानेवाला मिलनेपर मित्तु लोग पढ़ना चाहेंगे । पक मरतवे इघर प्रनति दो जामैपर बहुतसे स्थामॉपर इसका प्रभांव पड़ेगा | यहाँ कुछ बातें बर्मामें रइनेवाज़े भारवीपोंके सामने करनेके लिए रक्‍ली गई हैं । जो लोग श्वयं यहाँ रढते हैं वह कितनी ही श्रौर बातें सोच सकते हैं । झसल बात तो यह है कि उनको छापनी उपयोगिता सिद्ध करनी छोगी । जाकी मास शापके देशके झमुकूल हैं । दे




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