बहती गंगा | Bahati Ganga

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रोम-रोस में चज़वल शीर्षक श्रध्याय विशुद्ध जनशुतिं के श्रावार पर हैं। उत्त अध्याय के नायक सालर उपाध्याय के वंशज अब सो काशी में हैं । इस श्रध्याय में जिस मढ़ी की चर्चा हैं वह आज से प्रायः सोलह चर्ष पहले तक काशी में सखिकर्णिका घाट पर चक्रपुष्करिणी के ठीक दुन्षिण-पूर्व में गज्ञाजी के उपर टेढे. रूप में वतंसान थी । ग्वालियर राज्य की ओर से घाट के पुनर्चिमाण के समय बद्द तोड़ दी गई । सिवनाथ-वहाहुरसिंह का खूब बना जोड़ा शीर्षक अध्याय में जिस शिवनाधलिंद का उल्लेख है उसका स्मारक काशी में दारूमलवाही की कोठी के नीचे शुवनेश्वरी सन्दिर के कोने पर महाराज भावनगर के शिवाले के पीछे रास्ते के बीच एक चीौरी के रूप में है । इनके सम्बन्ध में श्री सावलजी नागर ने दिखा है कि शिवनाथसिंह बरहादुरसिंद का. एक जबरदस्त अखाड़ा था । इनको शिरफ्तार करने के खिए पलटन सेजी गई । ये तलचारबाओी के उस्ताद थे लड़ पढ़े । यह चौरी उल्त स्थान का स्मारक हे. जहाँ उन्होंने वीरता प्रदर्शित की और दोनों मित्र चन्दन की एक ही चिता पर सस्म किये गए । परन्तु इं० बी० -हैवेल ने बनारस--दि सेक्रिड सिटी नामक अपने ग्रन्थ में शिवनाथलिंह का. उत्तलेख एक दूसरी ही घटना के प्रसंग में किया हैं। लखनऊ के नवाब बज़ीरअली के थिद्ोह के सिलसिले में उन्होंने लिखा है कि 8 एप दिए 0009- एॉंए80075 8. 686८5 फटा ८ व8ु8६ ऊांप री 8 एटी8प07 एव 16 रिघ]8 घएते उपतिए रंध0 (6 168067 ० 8 8धएट्ट ० 8घ्ारध5. ब्र्थात् चज़ीरश्रली के घड्यन्त्र में राजा के एक सम्बन्धी जगत सिंह और बाँकों का एक नेता शिवनाथ भी शामिल था । फिलिप्लकेप के बनारस-- दि स्ट्रांगहोदड थ्ॉव हिन्दूज़ नामक अन्थ में इन बाँकों का उदलेख इस घ्रकार किया गया है-- 06 एप फा88 8 (8 पट दाए रिट छाए प्पजिप्राहपा 8 7 छा5 पा टिडाट्त 9ए 8 8060165 0. 5प्घ88८प०8 रुक




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