संसार की प्रसिद्ध कहानियां | Sansar Ki Prasiddh Kahaniyan
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4.75 MB
कुल पष्ठ :
134
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)डाक्टर हिडेगर का प्रयाग श्र उनका छुछ न कुछ छाकपण हरे लिये जा रहा है और जहाँ पहले एक भी रेखा नहीं थी वहाँ सुर्रियाँ गहरी होती जा रही हैं । कया यह जम था ? कया एक पूरे जीवन-काल का परिवर्तन इतनी ज़रान्सी देर में घटित हो गया था और अब ये चार बूढ़े व्यक्ति फिर व्यपने पुराने दोस्त डा० हिंडेगर के साथ बेठे हुए थे ? क्या हम फिर इतनी जल्दी बूढ़े हो गये १ वे करुश स्वर में बोल चठे । वास्तव में वे हो गये थे। योवन-निभार के जल का स्रसाव तो मदिरा से भी अधिक क्षणिक था । इसकी बदहोशी अब सब ड़ चुकी थी । हाँ वे अब फिर ब्द्धावस्था सें थे । विधवा से काँप कर भावावेश में लिससे कि अब भी उसका स्वीपन सपप्र होता था--अपने दोनों सुखे हाथों से सुख ढक लिया श्र हृदय से आह की कि जो अब इनको सुन्दर नहीं रहना था तो तो इन पर कफ़न क्यों न पड़ गया । दोस्तों यह सच है कि छाप लोग अब फिर बूढ़े हो गये हैं . डा० हिडेगर ने कहा बोर यह देखिए थौवल-निभर का सारा जल भूमि पर बिखरा पड़ा है। खेर मुझे इसका ब्फ़सोस नहीं है । क्योंकि झाज शाप लोगों ने ऐसा सबक मुझे दिया है कि यह करना मेरे द्वार पर भी शगर भरता होता तब भी मैं झपने होंठ उससे तर न करता--करापि. न करता नहीं चाहे इसकी बडहोशी थोड़े से क्षणों के लिए नहीं बर्षों के ही लिए क्यों न होती । _ लेकिन स्वयं डाक्टर साहब के दोस्तों ने ऐसा कोई सबंक्र नहीं सीखा |. उन्होंने .फ्लोरिडा की यात्ना का उसी क्षण निश्चय कर लिया कि वहाँ जाकर सुबह दोपदर छोर शाम तीनों काल यौचनननिकर का जल पिया करेंगे। .. का
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