वीर विनोद | Veer Vinod

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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महाराणा प्रतापसिंह ९२ चीरविनोद महाराणाकी कतेंब्यता- १५३७ खह्लसस्लसलससललसननननननताम _ हू खामोश रहे ठेकिन दर्बारसे रुख्सत होकर डेरॉपर आने बाद ऊपर बयान किये हुए पांचां सदार शतके वक्त अपने अपने ठिकानोंको चलेगये. सहाराणाने जर्गा वह बात रगस्सेसे नहीं कहीं थी मगर इन ठोगोंने उन दाब्दोंसे अपनी जानका खतरा समझ छिया. फिर महाराज नाथसिंह अपने ठिकाने बागोरसे रवानह होकर सादुड़ी होता हुआ देवलिया पहुंचा. वहां कुछ दिनों रहकर ऊसटवाड़े ( माठवा देशकी पूर्वी हद खीचीवाड़ाके पास ऊमट राजपूतोंका सुर्क ) में गया चर वहांपर अपना व अपने बेटे भीमसिंहका विवाह करके विक्रमी १८०९ श्रावण | हि ११६८५ बाव्वाठ .८इं० १७५२ ऑँगस्ट में वहांसे बूंदी गया राव राजा उम्मेद- सिंहने देवपुरा गांवतक पेइवाइई की और अपने यहां बारह दिनतक रखकर चार सौ रुपया रोज़ानह मसिट्मानीका पहुंचाते रहे. फिर वहांसे अपने पुत्र भीस- सिंह सहित जयपुरके महाराजा साघवसिंहके पास पहुंचा. उस समय महाराजा माघवसिंह और जोधपुरके महाराजा बख्तसिंह दोनों माठपुरासे एक मन्जिठ भूपोठलाव ताठाबपर सुकीम थे... दोनों महाराजा नाथसिंहसे पेइवाइं करके मिें. इसी सफुरमें जोधपुरके महाराजा बख्तसिंहका इन्तिकाल होगया. महाराजा साघवसिंहने नाथसिंहकों तसझी देकर कहा कि हम प्रतापसिंहको खास्जि करके आपको सेवाड़का सहाराणा बनावेंगे. इस बातपर झलायके ठाकुर कुद्ालसिंहने माघवरसिंहुकों मना किया छेकिन्‌ उसकी नसीहत कारगर न हुई. वंशभास्करके कत्तांने इस बातपर सहाराजा माघवसिंहकी बड़ी हिंकारत की है कि जिन सहाराणा जगतवसिंहने साधवसिंहकों जयपुरकी गद्दीपर बिठानेके ठिये एक करोड़ रुपया ख़च॑ करके बहुत कुछ ताकत दिखलाई उस उपकारकों भूठकर महाराणाके पुत्रसे विसुख डुआ्ना. देवगढ़का रावत जदावन्तसिंह झाहपुरेका राजा उभ्मेद्सिंह देखवाड़ेका राज राघवदेव आर सनवाडका बाबा सारथसिंह महाराज नाथसिंहसे मिलकर मेवाड़के गांव ठटनेठगे. उद्यपरके सहाराणा प्रतापसिंह बड़े बहादुर व वुद्धिमान थे जिनकी कत- व्यताका नमूना बतलानेकों मेवाउमें एक किस्सह मइहूर हे- ठोग कहते है हक सहाराणाके गद्दी बेठने बाद रावलेंकी रामत (१ ) करवाइं गई जिसमें एक सिपाही ओर (१ ) रावछ एक कौम चारणोकी याचक है इन लोगोंका यह काम है कि दस बीस आदमी मिलकर जाडेके मौतममें हमेशह देदामें फिरते हैं और अक्सर चारण व राजपूतेंकि साम्हने || नाटकके तौर तमाशा करते हैं यह कम राजपूतानह व गुजरातके सिवा दूसरी जगह कहीं नहीं सि है इस नाटकको रामत बोखते हैं रु श्र पपयटाटटटटटटटटयटटडननिणटडटय्टयटपटसटपययाा झ़ थ झप्प्यगडडडड 555255 रूुनं 2 255 5 सट 22. 2 े-2 222552.. 22 22 222.2 .222..2.. 2.2. .202 222525 225 5225252222 52522 2525 -25552255-25 न्225 पिन शरण 2




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