चार कहानियां | Chaar Kahaniyan

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Chaar Kahaniyan by सुदर्शन - Sudarshan

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about सुदर्शन - Sudarshan

Add Infomation AboutSudarshan

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
द्सहरेके दिन थे । सिकन्घीरकी अधकारमय भूमि चन्द्रलोक बनी हुई थी । मकान और दूकानें दुलहिनकी तरह सज रही थीं सड़कें शीदोकी तरह चमक रही थीं प्रजा पंछियोंकी तरह खुश थी । क्या मजाल जो सड़कपर कहीं तिनका भी पड़ा मिल जाय । महाराजके आदमी रोज़ देखने आते थे । दाहरसे बाहर सुन्दर खेमोंकी दो कतारें दूर तक चली गई थीं । इनमें दविन्दुस्तानकी मशहूर गानिवालियाँ ठहरी हुई थीं । कोई लखनऊसे आई थी कोई इलादाबादसे कोई बम्बईसे आई थी कोई कलकत्तेसे । यह सब अपनी अपनी कलामें उस्ताद थीं । किसीकी फीस पाँच सौ रुपया दैनिक थी किसी की एक हज़ार । दो-तीन ऐसी भी थीं जो तीन हज़ार रुपया रोज़ानापर आई थीं । ख़ेमोंके इस दहरमें हर समय रोनक रहती थी । दर समय खुशी खेलती थी । ऐसा माढम होता था जेंसे एफ छोटा-सा शहर बस गया है । यहाँ यौवन नाचता था सौन्दर्य गाता था आनंद चुहल करता था । जीवनकी ऐसी जीती जागती ऐसी हँसती-खेठती ऐसी फली-फूली नगरी किसने देखी होगी ? नगरी क्या थी ज़मीनपर स्वर्गपुरी उतर आई थी । शहरके दूसरी तरफ एक और दहर बसा हुआ था । यहाँ ब्राह्मण और पंडित विराजमान्‌ थे धोतियोँ बँघनेवाले तिलक लगाने वाले माला फेरनेवाले । उनमेंसे कोई भी ऐसा न था जो पचास रुपए




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now