विद्यापति | Vidyapati

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Vidyapati by शिव प्रसाद सिंह - Shiv Prasad Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विद्यापलि ध्यु कहा था कि राजा और ब्राह्मण एक दारीर में एकत्र कम होते हैं कीत्तिसिह भूपति हैं और साथ ही भू-देव-- ओइनी वंस पसिद्ध जग को तसु करइ न सेव दुद्ड एुकव्थ न पाविभद् भुअवद् अरु भूदेव विद्यापति मिथिला के एक सम्पन्न ब्राह्मण-कुलछ में उत्पन्न हुए जो अपने विद्या-प्रेम के लिए विख्यात था । कर्मादित्य देवादित्य जैसे पूर्व पुरुष न केवल विद्वान थे बल्कि अपने समय के उच्च दासनाधिकारी भी थे । डॉ० सुभद्र झा ने लिखा है कि विद्वानों के ऐसे यशस्वी परिवार में विद्यापति का जन्म हुआ जो अपने परम्परागत विद्या-ज्ञान के लिए प्रसिद्ध था। कवि को रचनाओं में इस परम्परा का पूर्ण प्रतिफल दिखाई पड़ता है। विद्यापति घर्म-दर्शन भूगोल न्याय आदि के प्रकाण्ड पंडित थे । शिवसिह के आदेश पर लिखे हुए पुरुष-परीक्षा प्रन्य में विद्यापति ने लिखा है यो गोडेइवरगज्जनेइ्वर रणक्षौोणीसु लब्घधा यशो दिक-कान्ताचय-कुन्तलेघु नयते कुन्द्खजामापदम्‌ तस्य श्रीशिन्सिंह देव नपतेविज्ञप्रियस्याज्ञया ग्रन्थ ग्रंथित दण्डनीतिविषये विद्यापतिब्यातनोत्‌. विद्यापति प्रंथिल दण्ड-नीति में भी पारंगत थे। संस्कृत भाषा पर उनका कितना अधिकार था इस ग्रन्थ को देखने से पता चलता है। विद्या ज्ञान और ब्राह्मण-परम्परा सब कुछ उन्हें दायरूप में मिली थो । किन्तु इस प्रकाण्ड ज्ञान ने उनके दृदय के भाव-स्रोत को सुखाया नहीं उन्हें भव-विमुख नहीं किया । न तो उन्हें संसार अनित्य मिथ्या और बुदुबुद्‌ को भाँति प्रतीत हुआ । जब्राह्मणत्व कभी-कभी जोश पर भो आता था खास तौर से मुसलमानों के आक्रमण के समय बिजेताओं की संस्कारहीन प्रवृत्तियाँ और कुरुचिपूर्ण रीति-रिवाज उन्हें क्षुब्ध कर देते थे । कीर्तिलता में मुसलमानों के इस व्यवहार की उन्होंने बड़ी तीब्न भत्सना को है -- 1. 5000५ ० द0५०090- 83५ 20




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