भारतेन्दु हरिश्चन्द्र | Bhartendu Harishchandra

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : भारतेन्दु हरिश्चन्द्र  - Bhartendu Harishchandra

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about ब्रजरत्न दास - Brajratna Das

Add Infomation AboutBrajratna Das

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
रत भारतेन्दु हरिश्चन्दर तीन ग्राम क्रय कर लिए गए और फोटे विलिअम के कलकत्ता ग्राम में पड़ने से उस कुल स्थान का नाम कलकत्ता पड़ गया । सनु १७१३ ई० में विलिअम हैमिल्टन नामक डाक्टर ने फर्सखसियर के मृगी रोग को अच्छा कर दिया जिस पर उसने प्रसन्न हो डाक्टर के माँगने पर कलकत्तें के पास के अड़तीस ग्राम अंग्रेजों को दे दिए और देश के भीतर व्यापार करने तथा टकसाल बनाने का भी अधिकार दे दिया । इस प्रकार देखा जाता है कि कलकत्ता नगर की उन्नति का आरंभ अठारहवीं शताब्दि के साथ-साथ हुआ । सेठ अमीनचंद जो अत्यंत व्यापार-कुशल थे नए भंग्रेज-वर्णिकों के साथ व्यापार करने में अधिक लाभ की संभावना देखकर कलकत्ते आ बसे । इनके परिवार के और लोग राजमहल तथो मुशिदाबाद में रहते थे पर जब इन्हें यहाँ अधिक लाभ होने लगा तब इन्होंने यहीं अपने रहने को बड़े बड़े महल और उद्यान भादि बनवाए । इनकी अनेक प्रकार से सुसज्जित विशाल राजपुरो पुष्प-वुक्षादि से सुशोभित विख्यातः उद्योन मणि-माणिकोदि से परिपूर्ण राजभांडार सशस्त्र सैनिकों से भरा हुआ सिंहृद्वार तथा अनेक विभाग के असंख्य सेवकों की भीड़ को देखकर लोग इन्हें केवल व्यापारी महाजन न समभ कर राजा मानने लगे ।# नवाब के दरबार में जिस प्रकार सेठों में जगत सेठ की इज्जत थी उसी प्रकार वर्णिकों में अमीनचंद की प्रतिष्ठा थी । इनका . सम्मान इतना था कि इनके नौ पुत्रों में से तीन को राजा की भर - एक को रायबहादुर की पदवी मिली थी । अंग्रेजों ने अपरिचित देश में आंतरिक व्यापार बढ़ाने के लिये इन्हीं अमीनचंद पर विश्वास किया और इन्हीं के सहयोग से वे गांव-गाँव में दादनी ( अगाऊ ) बाँट कर कपास और कपड़े क्रय करते थे परन्तु ग्रामवासियों से परिचित हो जाने पर अंग्रेजों ने इनकी धीरे-धीरे उपेक्षा करनी . आरम्भ की । नवाब के दरबार में भी इनका मान था और अंग्रेजों को इन्हीं के द्वारा नवाब से लिखापढ़ी करने में विशेष सुविधा होती थी । इसी प्रकार अंग्रेजों की समिति में भी इनकी प्रधानता होने से कुछ सज्जन इनसे द्वंघ रखने लगे और इन सबने इन पर लॉोलच के कारण चीजों का भाव बढ़ाने तथा माल को बिगाड़ने का दोष लगाया । कंपनी ने इन्हें ठीका देना छोड़ दिया पर थे अपने प्रशुत घन से स्वयं व्यापार करने लगे । लियौन्स रेंज में कोर्स तथा जॉन नौक्स के मकानों के पास यह था । इसके बगल से थिएटर स्ट्रीट जातीं थीं जो नए तथा पुराने चींना बाजार के मोड़ पर है (कलकत्ता एकाले सेकाले) ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now