वह जग | Vah Jag

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Vah Jag by श्री इन्द्रजीतन नारायण राय - Sri Indrajitan Narayan Ray

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ४ ) रक्ता करनी है | देश के प्रति मेरा भ कुछ कतव्य होता है. । फट जद कु जद उस दिन जब प्रकृति और भी गम्भीर थी सूय्ये की उप्णता और भी तीघ्र थी और मनुष्य की सत्ता उस पर इतनी न थी जेंसी आज-- उस जमाने की बात है। मनुष्य इतना छली न था उसमें इतना दम्भ न था और वह प्रकृति से इतना दूर न था | मगघ के राजा ने काशीरा ज पर चढ़ाई की थी पर युद्धस्थल के बाहर दोनों मित्र थे । है फट जद जद राजकुमारी महाराज मारे गये । पिता जी मारे गये न |? अच्छा रणसेरी बजी | मैं रवयं रण भूमि में आती हूँ. । काशीराज की एकलौती पुत्री ने युद्धभूमि में आँखें उठाई । तीदण दृष्टि दौड़ाई । पर किशुन दिखलाई न पड़ा । राजकुमारी एक आह भरी | तर तर तर ् किशुन को गहरी चोट लगी थी। उसे सन्निपात हो गया था | कमंचारियों ने एक दिन सुना राजा कद रद्द थाँ--+ उसका नाम राधा था | मैंने उससे सहायता माँगी थी प्रेम करके । उसने कहा था--ूदेश के प्रति मेरा भी कुछ कतेव्य ड्ोता हे + ०० ०००००]




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