सूरसागर | Surasagar
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध - Ayodhya Singh Upadhyay Hariaudh,
केशव प्रसाद मिश्र - Keshav Prasad Mishr,
नंददुलारे वाजपेयी - Nand Dulare Bajpai,
रामचंद्र शुक्ल - Ramchandra Shukla
केशव प्रसाद मिश्र - Keshav Prasad Mishr,
नंददुलारे वाजपेयी - Nand Dulare Bajpai,
रामचंद्र शुक्ल - Ramchandra Shukla
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
61.9 MB
कुल पष्ठ :
870
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध - Ayodhya Singh Upadhyay Hariaudh
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केशव प्रसाद मिश्र - Keshav Prasad Mishr
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नंददुलारे वाजपेयी - Nand Dulare Bajpai
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रामचंद्र शुक्ल - Ramchandra Shukla
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रथम स्कंघ € विनय यंगलाचरण राग विलावल चरणु-कमल वंदो हरि-राइ । जाकी कूपा पंगु गिरि लंबे अंधे का सब कल दरसाइ | छत्र घर ) हि सुने यू ग पुनि वोले रक चले सिर सूरदास स्वामी करनासय बार वार बंदी हिहि पाइ ॥१॥ सगुणोपसना _..... राग कान्हरों अबिगत-गवि कल कहत न आये । ज्यों गूँगे मीठे फल कौ रस अंतरगत हाँ भावे । परम स्वाद सबही सु निरंतर अस्त तोप उपजायें । सन-वानी को अगम-झगोचर सो जाने जो पाये । रूप-रेख-गन-जावि-जगति-बिछु सिरालंब कित धाये । सब बिधि अगम विचारईदिं तातें सूर सगुन-पद गावे ॥२॥ भक्ता-वत्सल्ता राय मारू बासदेव की बड़ी बड़ाई | जगत-पिता जगदीस जगत-गुरु निज भक्तनि की सहत ढिठा झूगु को चरन राखि उर ऊपर बोले बचन सकल-सुखदा सिव-बिरंचि मारन को धाए यह गति काह देव न पा बिन॒॒ बदलें उपकार करत है स्वारथ बिना करत सित्रा रावन अरि को झचुज विभीषन ताकां मिले भरत की नाई बकी कपट करि मारन झाई सो हरि जू बेकुंठ पठाई बिनु दीन्हें ही देत सूर-प्रभु ऐसे हैं जदुनाथ गुसाई ॥३॥ 2 तप /1 ८ ्ग 2 | | |
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