सुदर्शन - सुमन | Sudarshan - Suman

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Sudarshan - Suman by सुदर्शन - Sudarshan

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about सुदर्शन - Sudarshan

Add Infomation AboutSudarshan

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
रे सुददान-सुमन करते हो श्रपनी देह की और नहीं देखते । जाओ श्रपने किसी आदमी को बुला लात्रो । तुम से न उठेगा । मेरे बाबा ने झ्राह मरी शऔर कहा-- सरकार मेरी सहायता कौन करेगा १ सरदार साहब ने कुछ देर सोचा फिर वह गठरी श्पने सिर पर उठाकर चलने लगे । हम दंग रह गये । हमारे शरीर के एक-एक अंग से उनके लिए दुद्आा निकल रही थी । हम सोचते थे यह श्रादमी नहीं देवता है । (४) यहाँ पहुँच कर धोबी रुक गया। कहानी ने बहुत मनोर॑जक रूप धारण कर लिया था | में इसका श्रगला माग सुनने को अधीर हो रहा था । मैंने जल्दी से पूछा-- क्यों माई धोबी फिर क्या हुआ १ . धघोबी ने वायु-मण्डल में इस भांति देखा जेसे कोई खोई वस्तु को खोज रहा हो श्र फिर दीघ निश्वास लेकर बोला-- जब हम घर पहुँचे और सरदार साहब श्रनाज की गठरी हमारे शँगन में रखकर लौटे तो मैं श्रौर मेरा बाबा दोनों उनके साथ बाज़ार तक चले श्राए । मेरा बाबा बार-बार कहता था इसका फल झ्ापको वाहे-गुरु देंगे मैं इसका बदला नहीं दे सकता । एकाएक उधर से कुछ फ्रौजी सिक्ख निकल झ्ाए । वे.सरदार साहब जहाँ खड़े थे वहाँ रोशनी थी । फ़ौजियों ने उनको पहचान लिया श्रौर तलवारें निकाल कर सलाम किया । यह देखकर मेरा बाबा डर गया सोचा-यह कौन है ? कोई बड़ा श्रोहदेदार होगा वर्ना ये लोग इस प्रकार सलाम न करते । जब सरदार साहब चले गए तब मेरा बाबा उन फ़ौजियों के पास पहुँचा तर पूछा-- प्यह कौन थे १2 उनमें से .एक ने बाबा की तरफ श्राश्चर्य से देखा श्रौर जवाब दिया-- तुम नहीं जानते ? यह हमारे मददाराज थे |




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now