श्री कृष्ण - चरित | Sri Krishn Charit

Book Image : श्री कृष्ण - चरित  - Sri Krishn Charit

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about भवानी लाल भारतीय - Bhavani Lal Bharatiya

Add Infomation AboutBhavani Lal Bharatiya

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
ईदवर के अवतार लेने की कल्पना ने प्रश्नय प्राप्त किया तो वासुदेव कृष्ण को भी विष्णु का प्रधान श्रवतार मात लिया गया । श्रन्य अवतार तो उस परम तत्त्व के श्रंश-कला मात्र हैं परन्तु कृष्ण को तो पूर्णावतार अथवा षोडशा कला-सम्पन्न प्रवतार कहा गया-- एतेचांदा कला पुंस कृष्णस्तु भगवान्‌ स्वयं । यह श्र भी श्राइचयें की बात है कि जिसे परात्पर विष्णु का भ्रवतार कहा गया उसे ही चोरी व्यभिचार घोखाधड़ी करता श्रादि दुर्गणों का भण्डार कहने में भी पुराणकारों श्रौर कवियों को संकोच नहीं हुम्रा । कृष्ण के निर्मल स्वाभाविक एवं मानवो चित चरित्र को विस्मृत कर उनके नाम पर जो पाप एवं दुराचार की कहानियाँ गढ़ी गईं उन्हें विभिन्‍न रूपकों श्रौर मिथ्या श्राध्यात्मिक अ्रलंकारों से आच्छत्त कर सामान्य भक्तजनों को पथश्रष्ट एवं दिड्मूढ़ बनाया गया । अतः यह निषिवाद रूप से कहा जा सकता है कि कृष्ण जसे श्रादशं पुरुष के चरित्र पर ईदवरत्व का श्रारोप करना उसे परमात्मा का श्रवतार बताना आर मानना एक ऐसी ही विकृति है जिसने कृष्ण के वास्तविक गौरव श्र माहात्म्य को तो कम किया ही है उन्हें सामान्य भावभुमि से हटाकर श्रलौकिक देव-समाज में प्रतिष्ठित कर दिया हैं। इसका स्वाभाविक परिणाम यह निकला कि कृष्ण-चरित्र से सानव-समाज को जो दिक्षा प्रेरणा भ्रथवा स्फूति मिलती है उसे सर्वथा भुला दिया गया श्रौर केवल उनके सूरतिमय विग्रह की पुजा-अर्चा करना अथवा उनकी कवि तथा पुराण-वर्शित लीलाश्रों का गायन करना ही लोगों का एकमात्र कत्तंव्य बन गया । इससे एतहेशीय जन-समाज की जो महती हानि हुई है वह स्पष्ट है। यहाँ अ्रवतारवाद के सिद्धान्त पर विस्तार से विचार करना तो अ्रप्रासंगिक ही होगा किन्तु इतना कह देना ही पर्याप्त है कि भारतीय ग्रायंसमाज की पुरातन दार्दनिक एवं भ्राध्यात्मिक चिन्तनधारा में ईदवर के श्रवतरित होने श्रथवा परम सत्ता के मनुष्य-रूप में घरा-धाम पर श्राकर श्रस्मदादि मानवों के सदुश जीवन यापन करने का कहीं भी उल्लेख नहीं मिलता । विस्व-वाइमय के प्राची नतम ग्रन्थ वेदों में भी ईदवरोय सत्ता को श्रशरीरी निराकार निर्विकार तथा स्व॑व्यापक




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now