शिव सौरभम | Shiv Saurbham

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Shiv Saurbham by डॉ शिवगोपाल मिश्र - Dr. Shiv Gopal Mishra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बहुआयामी विज्ञान सेवी डॉ० प्रोफेसर शिवगोपाल मिश्र डॉ० सुनील कुमार पाण्डेय | जीवन-यात्रा में वैसे तो अनेक व्यक्तियों से सम्पर्क होता है लेकिन कभी-कभी ऐसे व्यक्ति से | भी सम्पर्क हो जाता है जिसका सम्पर्क ही मानो गौरव का विषय हो। मैं भी शायद स्वनामधन्य विज्ञान | | भूषण डॉ० शिवगोपाल मिश्र जैसे लब्धप्रतिष्ठ व्यक्ति का सम्पर्क पाकर स्वयं को धन्य समझने लगा हूँ | क्योंकि ऐसे महान व्यक्तियों का सान्निध्य व प्रेम विरलों को ही मिल पाता है। आप शिव की भाँति | | परोपकारी व दयालु तथा गोपाल की भाँति अत्यन्त सरल हैं। इस प्रकार यथा नाम तथा.गुण की. । कहावत आप पर पूर्णतया चरितार्थ होती है। आप व्यक्ति नहीं स्वयं अपने आप में एक संस्था हैं । डॉ० साहब के दर्शन का प्रथम अवसर १६६२ की शुरुआत में उस समय मिला जब मैं शोध | छात्र के रूप में निवेदन करने गया। इसके पूर्व मैंने डॉ० साहब के लेख पढ़े थे और मुझे अपने कुछ वरिष्ठ साथियों द्वारा बहुत कुछ जानने का अवसर मिलता रहता था जिससे मन में यह इच्छा प्रबल |. होती जा रही थी कि डॉ० साहब के निर्देशन में शोध करूँ। लेकिन मन में यह डर जरूर रहता था कि पता नहीं मेरी यह इच्छा मूर्त रूप ले पायेगी कि नहीं | मेरे इस कार्य को डॉ० ए.एन. पाठक पूर्व | विभागाध्यक्ष मृदा विज्ञान च.शे. आ.कृषि एवं प्रौ० वि.वि. तथा इसी विभाग के ही डॉ० टी.पी. तिवारी | ने सरल बनाया। जब उन्होंने यह जाना कि मैंने एम.एससी. तक की सभी परीक्षायें प्रथम श्रेणी में | उत्तीर्ण की हैं तो उन्होंने सहर्ष डॉ० साहब को पत्र लिख दिया और मेरी इच्छा साकार हुई । जीवन-वृत्त . डॉ० साहब का जन्म १३ सितम्बर १६३१ को उ०प्र० के फतेहपुर जनपद में यमुना नदी के तट | पर स्थित एक छोटे से गाँव नरौली में हुआ। आपके पिता पं० बद्दी विशाल मिश्र एक कृषक थे तथा | माता श्रीमती पार्वती देवी गृहकार्य में निपुण एक धर्मपरायण महिला थीं । आपके दो बहनें थीं तथा छः भाइयों में आप पांचवें स्थान पर थे। आपने गाँव से तीन मील की दूरी पर स्थित पाठशाला में पढ़ाई शुरू की । सन्‌ १६४० में अल्पायु में ही पितृविहीन हो गये । प्राथमिक शिक्षा पूर्ण करने के बाद आगे की शिक्षा के लिये फतेहपुर अपने अग्रज के पास चले गये। १६४२ में छठीं कक्षा में आपका प्रवेश राजकीय | । विद्यालय फतेहपुर में हुआ। सन्‌ १६४६ में हाईस्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद आप प्रयाग आ | गये और यहीं के.पी. इण्टर केलिज में प्रवेश ले लिया। उच्च शिक्षा हेतु जुलाई १६४८ में इलाहाबाद | विश्वविद्यालय (म्योर कॉलेज) में प्रविष्ट हुये । १६५२ में जब एम.एससी . का परीक्षाफल घोषित हुआ तो उसमें आपका स्थान सर्वोपरि रहा। इससे आपके अध्यापकगण बहुत प्रसन्न इुये। विश्वविख्यात मुदाविज्ञानी प्रो० नीलरत्न धर ने आपकी प्रतिभा को देखते हुये अपने साथ शोध कार्य करने को कहा । आपके शोध का विषय था क्षारीय और अम्लीय मिट्रटियों का निर्माण । आपके शोध प्रबन्ध के निरीक्षक शिव सौरभमू




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