बदलता पर्यावरण | Badalata Paryavaran

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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6 6 वदलता पर्यावरण बुराइयों से मुक्त होगी जिनके कारण भूतकाल में हमारे देश को पराभव का मुँह देखना पड़ा था । इन गतिविधियों द्वारा विद्यार्थियों में प्रकृति प्रेम एवं पर्यावरण संरक्षण की भावना बलवती होगी--ऐसी आशा है । इस प्रकार शिक्षक वर्ग पर ये विशेष जिम्मेदारी है कि वे विद्या्ियों में उन सब संस्कारों का आरोपण करें जिनके प्रभाव से नवयुग के नागरिक तैयार होंगे । इस प्रकार की पर्यावरण संरक्षण नीति जिसके द्वारा संतुलित विकास की गति- विधियाँ चल सकें यह मांग करेगी कि हमारे प्रशिक्षण संस्थान इंजीनियरिंग कॉलेज मेडिकल कॉलेज उच्च शिक्षा के सभी केन्द्र एवं वैज्ञानिक शोध केन्द्र आदि में ऐसी व्यवस्था की जाय कि जो नयी जनशक्ति तैयार होकर समाज में आ रही है वह इन सिद्धान्तों से भलीभाँति वाकिफ हो । इसके लिए यह सुझाव है कि इन केन्द्रों में बुद्धिजीवियों का एक मंच बने जो आज की उवलंत समस्याओं पर समय-समय पर विचार करे और उनका व्यवहारिक समा- धान भी प्रस्तुत करे तथा साथ ही कुछ न कुछ रचनात्मक कार्यक्रम अपनी क्षमता के अनुसार हाथ में लें । इन विचार क्लबों को इको रेस्टोरेशन निर्माण क्लब की संज्ञा दी जा सकती है जिनके द्वारा एक 3००ंक्ा 80घ00 ए00४टा1601 01 660ए०8017 806 ८७०0- इ८8(018900--36छाछार (सोशल एक्शन सुवमेंट फॉर एजूकेशन एण्ड इको रेस्टोरेशन) समीर नाम का बुद्धिजीवियों का पंचसुव्रीय अभियान चलाया जा सके । पाँच सूत्र इस प्रकार से होंगे । 1--नारी जागरण 2--नर का उददात्तीकरण 3--जनसंख्य -निपंत्रण 4--भुमि-जल संरक्षण एवं हरीतिमा-संवर्धन और 3--व्यथे पदार्थों का पुनउंपयोग एवं पुनरावतंन । समीर का अर्थ ठण्डी हवा है और यदि इस प्रकार का मलयानिल हमारे प्रशिक्षण केन्द्रों एवं विशिष्ट संस्थानों से समाज की तरफ बहेगा तो निश्चय ही पर्यावरण संरक्षण का वातावरण बनाने में सहयोग मिलेगा । बुद्धिजीवियों और कर्मजीवियों का फासला इससे कम होगा और समाज के कमेंजीवी बुद्धिजीवियों से प्रेरणा प्राप्त करके अपने कमें के स्तर को ऊँचा उठा सकेंगे । इससे पुरे समाज की क्रियात्मक. शक्ति का विकास भी होगा । इस सुन्दर वसुन्धरा को विनाश के अंधकुप से उबारने के लिए यदि सोचने-समझने वाले बुद्धिजीवियों की पहल नहीं होती है तो अब यह आवश्यक कार्य और कौन करने वाला है ? इसलिए आत्मरक्षा और सबकी रक्षा के लिए वुद्धिजीवियों को आगे आना ही पड़ेगा और कमेँजीवियों से अपनी दूरी कम करनी पड़ेगी । समय तेज़ी से गुजर रहा है। वह किसी की प्रतीक्षा नहीं करेंगा । अब देखना यही है कि हमारे समाज का बुद्धिजीवी वर किस हृद तक अपने दायित्व का अन्ज्ञाम देता है। विशिष्ट संस्थानों एवं उच्च शिक्षा के समपरित फैकल्टी सदस्यों एवं छात्र-छात्राओं के माध्यम से ही यह अभियान शुरू हो सकता है । यह पुरा विश्वास है कि समय की इस पुकार को हमारे देश का बुद्धिजीवी वर्ग नकारेगा नहीं +




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