सिद्धार्थ | Siddhartha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(११) पर ब्रह्माजी विराजमान रहते हैं । ब्रह्मा स्वये प्रतिष्ठा रूप होते हुए भी यज्ञ रूप विप्णणु म्तिष्ठा की अपेत्ता रखत द-अत एवं बिष्णणु को मतिष्ठा की भी प्रतिष्ठा कहा जाता हैं पांचों पिंड दी पुष्कर हैं । अर्थात कमल हैं ४ भ्रसेक पिराह में-हृत्पृष्ठु अस्ततपष्ठ बहितपष्ठ तीन २ पृष्ठ होते हैं । पिराड का केन्द्रस्यान छुत्पुष्ठ कदनाता है । इसे ही दहर पुरडरीक (छोटा कमल) कहते हैं ॥ एवं स्वयं पिरड अस्तधपुष्ठ है । यही दुसरा पुष्कर है । इसको झन्तःपुष्ठ॒ क्यों कहाजाता है इसका विवेचन-वेदनिरूपण में किया ज्ञायगा । इस पिराड के बादर पिरादंकी महिमा रहते। है । इस महिमा मणदल को (जिसे कि दम देखते हैं) बहिःप्र कहते हैं। हम अन्तपृष्ठ को नहीं देखते उसका केवल स्पर्श कर सकत हैं अत एवं इसे स्पश्यपिदिड कहा जाता है । एवं बहिएष्ठ दृष्टि पसच दोनें के कारण दृश्य पुरुडरीक कह- लाता है ॥ इस प्रकार इृत्पुयडरीक झन्तःपुरुडरीक एवं वहि।पुरडरीक इन तीनों पुष्करों में ब्रह्मा नितास करते हं। ज्ञह्मा जब रहेंगे-पुष्कर में दी रहेंगे। वद्दी पिराड पहिमा के कारण ४८ तक व्याप्त दोजाता हैं अत एव पुरुकरत्वात्‌ इसे पुष्कर कहा जाता है इम पुष्कर के केस्ट्र में प्रजापति. भगवान रहते हैं । प्रजापति ब्रह्मा आत्मत्तरतया स्वयं अनुत्यन्न दे । स्वयं स्वयेभू है परन्तु सब कुठ इन्हीं से उत्पन्न होता है । अत एवं वेद भगवान कहते हैं- प्रजापतिश्वरति गर्भ झन्तरजायमानों बहुधा विजायत लस्ययो नि परिपर्यान्ति घीरास्तरिमन्ह तस्थुसुवनानि दिम्वा पुष्कर तीथे में ब्रह्मानें यज्ञ कियायथा । झह्म की जन्म भूमि पुष्कर (बुखारा) था । इयादि पौराणिक कथाओं. का. एतिहासिक बह्या से संन्बधा समनना चाहिये ॥ झअस्तु बतलाना हु केवल इतनादी दे कि यह. हर.




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