वेद में कृषि विद्या | Ved Men Krxshi Vidyaa

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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९ अस्प स्थानपर करेगे । यहां केवछ इतराहीं दखना हैं कि वेद सुर है या नहीं। आर याद ह तो उसका उपयाग ।केप कामक सा वणन किया है । देखिए निश्न मंत्र । अयोप्ुखा । सचिमुखा अथो विकंकर्तामुखा ॥। क्रव्यादे वातरंइस आसजन्त्वभित्रान्‌ वजेण निसीधना ॥। अथब ११ । १० | ३ अरे - मुखा ादिके मूंहब ठे सूची - मुखा सुईके समान मूंदव ठे अथो अ.र विक॑ंफती - मुखेः कगेषके समान मुंहवाऊे जा वात - रहस 1 बायु कं साथ ुमतें ९ थार जी. वत्र - सानना वृद्ध तोन संधियुक्त बज्धस क्रव्य अद मास खाते ६ व॑ सब अ-पमें त्रान शात्र अं आलजन्तु साभालत € । मच्छर आदि प्राणी जा सईके समान मुँह धारण करत हैं भार जा अपने मखक तन धारावाऊें शखसे खून चूसन हू तथा जा वायुक बेगके साथ भ्रमण करते रहते हैं बे सब शत्र € अथात म छर आांद प्राणी मनुष्योक शत्रु हैं यह मेत्रका तात्पय है । इस मंत्र मे सूत्व -- सुखा सुईकेतमान मुख धारण करनवाले प्राणियेंका उल्लख € यद गुणबे.घक नम हैं । सुइको उपमा मुखवाट्य यहां आगइ ह | सुईके आकारको निश्चित करपता यहां ह । तथा-- थे अस्या ये अग्या साचिका ये प्रकंकता। ॥ अदष्टा किंचनेह व सर्वे साक॑ निजस्यत ॥ ऋग्वेद १ 1१९१ 1७




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