तारा | Tara

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Tara by रनवीर सक्सेना - Ranveer Saxena

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चध्याय दो ड्िबाजन हेडक्वार्टर नें रात के लिए एक बड़े जंगल में बेकरारी से सोती हुई रेजीमेंटों के बीच डेरा डाला । कही आ्राग नदी जलाई गई क्योकि गुजरती हुई सेनाश्रो की घात में जर्मन हवाई जहाज सतत सिर पर सनसना रहे थे । सुरंग लगाने वाला दल पहले ही झ्रा चुका था श्र उसने दि भर काम कर सीधी सड़कों नयनाभिराम संकेत वोर्डों और चीड़ की दशाखो से छाई हुई साफ-सुधरी श्रारामगाहों युक्त एक झाकर्षक हरा-भरा सगर बना डाला था । इस प्रकार के कितने क्षण-जीवी नगर यह सुरंग लगानेवाले लोग युद्ध के इन वर्षों में तैयार कर चुके थे । सुरंग लगानेवाली एक कम्पनी को कमाण्ड करनेवाला लेफ्टिनेट बुगोकॉब चीफ झॉफ स्टॉफ से बात करने के लिए इतजार कर रहा था । किन्तु लेफ्टिनिट-कर्नेल गालीव ने अपनी श्रॉखे नक्यों पर जमाए रखीं । दुद्मन के स्थानों को दिखलानेवाली हमेशा की नीली पेन्सिल की रेखाएँ मौजूद न थी । मौर केवल ईइवर ही जानता था कि पिछली टुकडियाँ कहाँ हें ? रेजीमेंट श्रथाह जंगल सें खतरनाक रूप से एक दूसरे से विलग थी । जिस जंगल में डिवीजन ने रात के लिए पड़ाव डाला था वह एक प्रशनवाचक की शबल का था । श्रौर ऐसा प्रतीत होता था कि मानों बह लेफ्टिनेट-कनेंल गालीव से सेना के कमाण्डर की उप- हासात्मक आ्रावाज में पुछ रहा है -- कहो क्या हाय ? हल है उत्तर- पदिचिमी मोर्चा नहीं हे जहाँ श्राधी लड़ाई भर जुम म्रपनी पिछाड़ी पर बेठे रहे सौर जर्मन तोपखाना नियमित घंटों पर गोलंदाजी करता रहता । यह चलता फिरता युद्ध है ।




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