सूरसागर सार | Soorsagar Saara

Soorsagar Saara by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्द ..... सूरसांगर सार भर हैं शी श़ दी नाचत वृद्ध तरुन अरु बालक गोरस-कीच मचाई । सूरदास स्वामी सुख सागर सुंदर स्याम कन्हाई ॥ ४॥ ्राजु नंद के द्वारें भीर । इक आावत इक जात बिदा हो इक ठाढ़े मंदिर के तीर । कोउ केसरि को तिलक बनावति कोउ पहिरति कंचुकी सरीर | एकनि की गो-दान समपत एकनि को पहिरावत चीर | एकनि के भ्रूषन पाटंबर एकनि की जु देत नग हीर । एकनि की पुहुपनि की माला एकनि को चंदन घसि नीर | एकनि माथे दूब-रोचना एकनि को बोघति दे धीर । सूरदास घनि स्याम सनेद्दी घन्य जसोदा पुन्य-सरीर ॥२॥ सोसा-सिंघु न अंत रही री । नंद-भवन भरि पूरि उमँरि चलि बज की बीथिनि फिरति बही री । दखी जाइ आजु गोकुल में घर-घर बेचति फिरति दही री । कहें लगि कहीं बनाइ बहुत बिधि कहत न सुख सहसहूं निबही री जसुमति-उदर-श्रगाघ-उद्धि ते उपजो ऐसी सबनि कही री | सूरश्याम प्रभु इंद्र-नीलमनि श्रज-बनिता उर लाइ गही री ॥दै॥ शैशव चरित जसोदा हरि पालने सुलावे | इलरावे दुलराइ मत्दावे जोइ-सोइ कछु गावे । मेरे लाल कीं श्राउ निंदरिया काहैं न आनि सुचावे। तू काहैं नहिं बेगहिं आवे तोकों कान्ह बुलावे । कबहूँक पलक हरि मूँदि लेत हैं कबहूँ अधर फरकावे सोवत जानि मौन हो के रहि करि-करि सेन बताने । इहिं अंतर अकुलाइ उठे हरि जसुमति मधुरे गावे । जो सुख सूर अमर-सुनि दुरलभ सो नंद भामिनि पावे ॥ ७॥। कपट करि ब्रजहि पूतना आई | अति सुख्प बिष अ्रस्तन लाए राजा कंस पढाई | मुख चूमति भ्ररु नेन निहारति राखति कंठ लगाई | साग बड़े तुम्हे नन्दरानी जिंहि के कवर कन्हाई । कर राहि छोर पियावति अपनी जानत केसबराई | बाहर हम के असुर पुकारी अब बलि लोड छुद़ाई ।




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