हिंदी उपन्यास उपलब्धियाँ | Hindi Upanyas Uplabdhiyan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सम्भावनाशओं के नये क्षितिज श् रही जौर यशपाल (दादा कामरेड मनुष्य के रूप कूठा सच ) झमृतलाल नागर (महाकाल बुद सर समुद्र) भगवती चरण वर्मा ( देढ़ें मेढ़े रास्ते चिलेखा भूले बिसरे चित्र ) तथा रांगिय राघव ( घरौद हुजूर सीघा सादा रास्ता ) आदि उपन्धासकारों द्वारा जीवित रही श्रौर परिवतित परिस्थितियों में युगीन भाव-बोधघ के साथ निरंतर विकसित होती रही । इन सभी उपन्यासकारों की कूतियों पर घ्रेसचन्द का प्रभाव रुपष्टतया देखा जा सकता है । इसी सामाजिक परम्परा के साथ आत्मपरक घास का भी सुत्रपात दुष्टि- गोचर होता है जिसमें प्रमुख रूप से जैनेख्रकुमार (त्यागपत्र ).. अज्ञेय ( दोखर एक जीवनी ) तथा इलाचस्ट्र जोशी ( निर्वासित प्रेत श्रौर छाया ) श्रादि के उपन्यास आते हैं । फ्रॉयड एडलर तथा युग आदि विदेशी मनोबैज्ञानिकों के सिद्धांतों से प्रभावित होकर जोशीजी ने अपनी रचनाश्रों का निर्माण किया । शिल्प की दृष्टि से इन लेखकों ने वास्तव में अत्यंत दलाघनीय कार्ये किया और हिंदी में शिल्प सम्बन्धी विविधता स्थापित की । इन उपन्यासों मे स्थूलता से सूक्ष्मता की ग्रोर जाने की प्रवृत्ति छक्षित होती है। लेकिन उनमें खटकने वाली जो बात सबसे अधिक है. वह इन लेखकों का पलायनवादी दृष्टिकोण है । इन लेखकों की अधिकाश रघनाश्ं में जीवन का यथा नहीं कल्पनाशील परिस्थितियों एवं झबचेतन मन की विक्तियों वासनामुलक प्रवृत्तियों श्रौर झ्रहं का ही चित्रण किया है । इन रचनाओं में जो व्यक्ति चित्रित हुआ है वह सेक्स के अभिशाप से ग्रस्त है और उसके जीवन की विभिन्न समस्याओं का समाधान सघर्प श्रौर जूभने में नहीं नारी की गोद मैं है । और तो आर यशपाल ने जो हुमेशा सामाजिक क्रांति एवं रूढ़ मान्यताथओं के प्रति विद्रोह का भण्डा बुलंद करते रहे हैँ श्रपते सवीनतम उपन्यास क्यो फंसे (१६६८) में सेक्स का इतना नगत चित्रण किया है कि वहू नारी-पुरुष के संक्स सम्बन्धों का साहित्यिक रूपांतर ही वन गया है जो फुटपाथ या विद्यार्थियों के हॉस्ट्लों में बेशुमार ढंग से हाथों-हाथ विकने वाली सस्ती और कुत्सित पुस्तकों से भिन्न नहीं है । सेक्स चित्रण की झतिरंजना यदापाल की कला को प्रारम्भ से ही जिस रूप में खष्डित करती रही हैं यह उसका चरमोत्कर्ष है । सेनस-सम्बन्धी रवतस्त्रता झौर चेतिक शिथिलता को मान्यता देने में शायद शभ्रभी भारतीय समाज को दाता न्दियाँ लग जाएँगी झौर जब जीवन की कठोर विषमताओं भूख- प्यास शोषण वेषम्य एवं युद्ध की श्राधंका से संत्रस्त मानवता की कठोर बहु- विध समस्याओं का समाघान सेक्स श्र अहं के दायरे में झग्वेषित होता है तो एक ऐसा प्रदनचिज्ल सामने उभरता है जिसके बाद हर चीज शून्य में विलीन होजाती है। स्वाधीनता के पकचातू मनेक नईं समस्याएँ सामने आई । विदव के दूसरे




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