महात्मा - विदुर | Mahtma - Vidur
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7.96 MB
कुल पष्ठ :
140
श्रेणी :
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मिथिला मिहिर - Mithila Mihir
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श्रीनन्द किशोरलाल - Shrinand Kishorlal
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्शु महात्मा चिदुर के के के के गाना विदुर --भला दरीका प्रेम जगवमें ॥ भला०-- हरिसे प्रेम किये दुख मेंटे होवे बेड़ा पार । प्रेमहिसि भगवान भगतके बखमें हो निरधार ॥। प्रीतिक्भी रोति न्यारी है यामें बसे सुरारी । प्रेमी प्रेमहिं पे बलि जावे धरे न दूसर नेम ॥ जगतूमें भला हरीका प्रेम ॥॥ भला०-- ओह माया. माया फिर माया कुरुपुरीके लिये माया जिस राज्यमें साझषात् कलिका अवतार दुर्योधन राजाके गढेका हार है जिस राज्यमें पक्षपात है धर्म भर न्यायका कुछ भी नहीं विचार हे उस राज्यके ढिये माया खंसार मैंने तुम्हे अच्छीतरह पहचाना । तेरे यहां दुष्टों खुशा- मदियो पापियों और पाखण्डियोंका सत्कार है। साधुसन्तों _ और पण्डितोंके लिये तिरस्कार ही तिरस्कार है। दुष्ट अब मैं तुम्हारे फन्देमें पढ़नेको नहीं । पद्मा आगई ? आओ तुम्दारा दी इत्तजार है । संन्यासिनीके वेषमें पह्माका आना पद्मा--तो लीजिये यह्द दासी भी तैयार है । चिदुर--अभच्छा तो धीरे-धीरे निकल चलो । पद्मा--इस अधमंस्थानको छोड़ सत्य और शान्तिके मन्दिरिकी रादद लो । दोनोंका जाना
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