मानसरोवर | Mansarovar
श्रेणी : कहानियाँ / Stories, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
25.22 MB
कुल पष्ठ :
348
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्द मानसरोवर की राह न पाकर शिकारी पर चोट कर बैठता है | कमी कमी नी श्रकसर सं कट पढ़ने पर ही श्रादमी के जौहर खुलते हैं | इतनी देर में सेठजी ने एक तरह है भावी विषत्ति का सामना करने का पक्का इरादा कर लिया था। डरें क्यों जो _ कद होना है वह होकर रहेगा श्रपनी रक्ता करना दमीरा कर्तव्य है मरना -जीना विधि के शथ में हे | सेठानीनी को दिलासा देते हुए बोले--ठुम नाइक इतना डरती हो केसर श्राखिर वे सब भी तो श्रादमी हैं श्रपनी नाव का मोह उन्हें भी है नहीं तो यह कुंकमं ही क्यों करतें ? मैं खिड़की. की श्राड़ से दस-बीस झादमियों को गिरा सकता हूँ | पुलिस को इत्तला देने भी जा रहा हूँ । पुलिस का कतेव्य है कि हमारी रक्षा करे। इम दस हजार सालाना टैक्स देते हैं किसलिए ? मैं. अभी दरोगाजी के पास जाता हूं । जब सरकार हमसे टेक्स क्षेतरी दे तो इमारी मदद- करना उसका घम हो ज्ञाता है। की सजनीति की यद तत्व उसकी सम में न श्राया । बद तो किसी तरह उस मय से मुक्त होना चाइती थी जो उसके दिल में सांप की भाँति बैठा फुफकार रहा या | पुलिस का उसे जो झनुमव था उससे चित्त को सन्तोष न॑ दोता थां। . बोली--पुलिसवालों को बहुत देख चुकी । वारदात के समय तो उनकी सूरत ... नहीं दिखायी देती न वारदात हो चुकती है तब श्रलबत्ता शान के साथ श्ाकर . रोब जमाने लगते हैं । हि .. पुलिस तो सरकार का राज चंला रही हैं तुम क्या जानो ? को कहती हूँ यों श्रगर कल वारदात दोनेवाली होगी तो पुलिस को खबर देने से इतजे सौ.दो लायगी.. लूट के माल में इनका मी साका होता है | जानता हूँ देख चुका हूँ श्रौर रोज देखता है लेकिन मैं सरकार को दस इनार सालाना टैक्स देँता हूं । पुलिसवालों का श्रादर-सत्कार भी करता रहता हूँ । अमी थाड़ों में बुपरिटेडिंट साइब श्राये थे तो मैंने कितनी रसद पहुँचायी थी | . एक पूरा कनस्तर थीं ओर एक शुकर को पूरी बोरी मेन दी थी । यह सब खिलाना- रजविलाना किस दिन काम अविया हाँ श्रादमी को सोलडों श्राने दूसरों के भरोसे नेवैंटस चाहिए ही इसलिए मैंने सोचा है तुम्हें भी भन्दूक चलाना चाहिए सिखा दूं. इम दोनों भन्दूफे छोड़ना शुरू करेंगे तो ड कुझ्ओों की क्या माल है कि फेल कदम रख सकें ? .... क
User Reviews
No Reviews | Add Yours...