तुलसी - रचनावली | Tulasi Rachanawali

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कु - गीतावली सूनत आह ऋषि कुस हरे नरसिंह मंत्र पढ़े जो सुपिरत भय भी के जासू नाम सर्वस सदासिव पावंती के । ताहि भऋरावति कौसिछा यह रीति प्रीति की हिय हुसति तुछसी के माथे हाथ ऋषि जब दियो राम किलकन लागे । महिमा सपमुक्ि ढी ढाविठोकि गुरुसजकनयन तनुपुठक रोमरोम जागे छिए गोद धाए गोद तें मोद मुनि मन अज्जुरागे । निरखि मातु इरघी हिये आछी ओट कहति मद वचन प्रेम के से पागे ॥। तृम्ड सुरतर रघुषंस के देत अभिमत माँगे । मेरे बिसेषि गति रावरी तुलसी प्रसाद जाके सकल अपंगल भागे ॥ अमिय-बिठोकनि करि कृपा मुनिवर जब जोए । तबतें राम अरु भरत छपनरिपुदवन सुपुखसखि सकलसुवन पुख सोए सुमित्रा छाय हिये फनि मनि ज्यों भोए । तुख्सी नेवछावरि करति मातु अति प्रेम-मगन मन स जर सुछो चन को ये मातु सकल कुलगुरुबधू प्रिय सखी सुहाई । सादर सब्र मंगठ किए महि-मनि-महेस पर सबनि सूपेन्ु दुद्दाई ॥ बोछि भरूप भूसुर छिये अति विनय बड़ाई | यूजि पायें सनमानि दान दिये कहि असीस सुनि बरपें सुपन सुर साई ॥। .... घर घर पुर बाजन छगीं आनंद बधाई । सुख सनेद तेहि समय को तुलसी जाने जाकों चोस्यो है चितचहूँ भाई ॥ राग घनाश्री या सिस के गुन नाम बड़ाई । को कहि सके सुनह नरपति श्रीपति समान प्र्ुताई ॥।




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