हिन्दी साहित्य और विभिन्नवाद | Hindi Sahitya Aur Vibhinnavad
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
22.03 MB
कुल पष्ठ :
329
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about राम जी लाल बधौतिया - Ram Ji Lal Badhautiya
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हूँ इन यह उठता है कि क्या प्रयोगवादी कवि का समाज श्रथवा साहित्य के प्रति कोई उत्तरदायित्व है ? यों तो प्रत्येक युग के प्रत्येक कवि का साहित्य तथा. समाज में कुछ न कुछ उत्तरदायित्व श्रवश्य ही होता है । साहित्य श्रतीत का प्रतिविम्ब तथा ग्रनागत का प्रदीप है । इस नाते साहित्यिक पर किसी प्रकार का उत्तरदायित्व न होना समाज के लिए श्रति घातक सिद्ध होगा । झतः साहित्यिक एवं सामाजिक दृष्टिकोण से कवि श्रत्यन्त उत्तरदायित्व पुर्णं व्यक्ति है । प्रयोगवादी कवि भी इस लौकिक नियम से मुक्त नहीं किया जा सकता । शभ्रज्ञेय जी ने तो प्रयोगवादी कवि के तीन उत्तरदायित्व बताये है--काव्य विपय सामाजिक उत्तरदायित्व तथा संवेदना का पुनः संस्कार । काव्य विषय से अज्ञेय जी का तात्पयं प्रयोगवादी कंविता के विषय-चयन से है । ये विषय एक विचित्रता लिए होते हैं । कारण प्रयोगवादी कवि को इतना श्रात्मज्ञान होता है कि उसमें उस काव्य प्रतिभा का श्रभाव है जो दाब्द चित्र झथवा भावचित्र द्वारा पाठक को सहसा मुग्ध करदे। श्रतः वह मदारी की भाँति पाठक का मन विषय की विचित्नता द्वारा पहले से झ्रावच- यान्वित कर देता है । परिणाम यह होता है कि पाठक एकदम विपय की विचि- त्रता में फंस जाता है । उसे यह विचार करने का ध्यान नहीं रहता कि विषय के श्रतिरिक्त कविता में इतर काव्योचित गुण हैं श्रथवा नहीं । इस प्रकार प्रयोगवादी कवि मदारी की भाँति पाठकों को भ्रचरज में तो डाल देता है किन्तु मदारी के ददांकों की भाँति प्रयोगवादी कविता के पाठकों की बुद्धि भी चक्कर में पड़ जाती है । वे नहीं समभक पाते कि इस विषय चयन से कवि का क्या श्राक्ष्य है ? कविता की झन्तरात्मा का भी थोड़ा सा भी ज्ञान नहीं हो पाता । इसका मुख्य कारण है प्रयोगवादी कवि की श्रस्पष्ट चिन्तन पद्धति । वह पुरातन के प्रति उदासीन तथा नूतन के प्रति उत्सुक होने के कारण सब स्वीकृत उपमाश्रों रूपकों तथा प्रतीकों का वर्जन करता है । नये प्रतीक उसकी अनुभूति की श्रभिव्यक्ति के लिए अत्यन्त ही प्रभावहीन सिद्ध होते हैं क्योंकि वे उसके हृदय के रागास्मक सम्बन्ध की उपज नहीं होते श्रपितु बौद्धिक तत्व द्वारा पुरातन प्रतीकों के झभाव की पूर्ति के लिए बरबस खींचकर लाये जाते हैं । अतः यह स्पष्ट है कि प्रयोगवादी कवियों को प्रथम उत्तरदायित्व के निर्वाह में तो सफलता नहीं मिली है । अज्ञेय जी का द्वितीय उत्तरदायित्व सामाजिक है । प्रयोगवादी कवि समाज ही ह
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