सूर्य का स्वागत | Surya Ka Swagat

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Surya Ka Swagat by दुष्यन्त कुमार - Dushyant Kumar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अनुरक्ति जव जब इलथ मस्तक उठाऊँगा इसी विह्ललता से गाऊँगा । इस जन्म की सीमा-रेखा से छेकर बाल-रविं के दुपरे उदय तक हतप्रभ अ्राँलों के इवी दायरे में खींच लाना तुम्हें में वार बार चाहूँगा सुख का होता होगा स्ललन दूख का नहों अ्रघर-पुष्प होते होंगे-- गंघ-हीन निष्प्रभाव छू. . .खोखूले. . .अश्नु नहीं गेय मेरा रहेगा यही गर्व मुग-पुगान्तरों तक मैं तों इन्हीं दाब्दों में कराहूँगा । कैसे बतलाऊँ तुम्हें प्राण छुटा हूँ तुमसे तो क्या ? वाण छोड़ा हुमा भटका नहीं करता . लगूंगा किसी तट तो-- कहों तो कचोटँगा ठहरूँगा जहाँ भी--प्रतिध्वनि जगाउँगा । तुम्हें में बार बार चाहूँगा भ




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