हिन्दी ,उर्दू और हिन्दुस्तानी | Hindi, Urdu Aur Hindustani

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हिन्दी उदूं श्र हिन्दुस्तानी ९ सय्यद इन्शाश्लला ने दरिया-ए-लताफ़त में उदू शब्दों के उच्चा- रणु-सेद पर उदाहरण दे देकर बहुत विस्तार से बदस की हे--मिट्टीं श्रौर मट्टी हरन श्रौर हिरन सुददल्ला श्रौर मदददला छिपना श्रौर छुपना खिंल्मना खुलाना श्रौर खलाना ढाँकना ढाँपना थाँबना थामना चाकू चाक लोन नोन दुगना दूना कभी कधी य यू श्औौर या वो वह और बुद्द उसको श्रौर उसकू मिंद श्रौर में एसी श्रौर ऐसी --मैं मे श्रौर मां में और मैं कद्दीं और कहूँ ठुम और तम हिलना श्रौर इलना रलना श्रौर रुलना घिसना श्रौर घसना लडकई लड़काई लड़कापन लड़कपन पुर और पूर मुद्दान श्र मूद्दान यहाँ और यहाँ प्यारा श्रौर पियारा सुझा और मरा इत्यादि बहुत से शब्द हैं जिनमें उच्चारणु-मेद या प्राम्तीयता का रूप-मेद दी भगड़े का सबब हे । इन्शाश्रल्‍्ला ने इन शब्दों के उदाहरण देकर उदू या गेर उदू का फैसला किया है । इनमें से जिस शब्द का जो उच्चारण देहली मे प्रचलित है ( या था ) उसे सही या श्रद्दले- ज़बान की उूं माना है बाकी को ग़लत उर्दू या टकसाल बाहर की बोली कहा है । साहित्यिक वा परिष्कृत भाषा के लिये स्थान विशेष की माषा को श्रादश मानना पड़ता है जिस प्रकार अंगरेज़ी भाषा के लिये पालमेंट की. माषा श्रादर्श मानी जाती हे । इसी तर उदूं कविता की भाषा का झादश देहली की ज़बान मानी गई । पर भाषा का यदद श्रादशं नियन्त्रण बोलचाल की भाषा के लिये ठीक श्रौर सुनासिब नद्दीं माना जा सकता । सय्यद इन्शा ने तों सारी देहली की भाषा को भी फसीइ उदू या. उदू-ए-मुझल्ला नहीं माना । उदू -ए.-मुश्रक्ला या लाल किले के श्रासपास की बस्ती--कुछ गिने चुने मुद्दब्लो की फिर उनमें भी कुछ ख़ास लोगों की जो देहली के क़दीम बाशिन्दे शरीफ और नजीब -- ( जिनके माँ बाप दोनों देदली के पुराने बाशिन्दे ) हैं उन्दीं की भाषा को उदू माना है । देहली मे जो बादर के लोग इघर-उधर से श्राकर बस गये हैं उनकी भाषा को अरष्ट या टकसाल बाइर की जवान




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