दुर्योधन - वध | Duryodhan - Vadh

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Duryodhan - Vadh by जगदीश नारायण तिवारी - Jagdish Narayan Tiwari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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र् प्रथम परिच्छेद २०. | जब पापियोंके पापका होता घड़ा भरपूर दै। तब निबेलोंसे भी सहज ही शीघ्र दोता चूर है ॥ यों भाइयोंका देख साहस नप हुए हथिंत मदा । श्रीकृष्णपर सब भार दे सब काय्य करनेको कहा ॥ २१ | श्रोपाथ भीम महाबली संग हो लिये विश्वेशके । दषिंत श्िदेव चढ़े हटाने ताप चय मगधेशके ॥ ये ब्रह्मचारी ब्राह्मणोंके वेशमें भाये वहां । नृप-भवनमें उपवासकर मगधघेश बेठा था जहां ॥ २२ | सत्कार समुचित हो खड़ा मगघेशने इनका किया | फल-फूल-भोजन किन्तु अस्वीकार इन्होंने किया ॥ क्या चूक भगवन हो गयी यह प्रश्न झट उसने किया | ये खब अभी हैं मोन यों श्रीकुष्णने उत्तर दिया ॥ ३ | यदि अद्धरात्रि व्यतीत होनेपर पुनः आाओ वहां । इस राजिको हम सब बितायेंगे ठद्दर करके जहां ॥ तो बात ये फिर कर सकेंगे नप यथोचित रीतिसे । बतलायगे पूजा तुम्दारी छी नहीं किस नीतिसे ॥




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