त्रिजटा | Trijata

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Trijata by शिव वचन चौबे - Shiv Vachan Chaube

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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16 | ब्रिजटा सम्मान अपने राष्ट्र की सत्‌ नीतियों का तू करे-- तल्‍लीन हो । कौन हो ? बात जो भी हो मगर यह बात तेरे लोचनों की लालिमा की भंगिमा में भाव बन कर झाँकती है खो कर बहुत प्रिय पात्र या प्रिय वस्तु या प्रिय मित्र को रिक्तता की वेदना से हो व्यथित अब स्नेह की धनराशि को निज स्मृति की चितन - तुला से आँकती हो। या हो अबवश निज वेदना से या विवश निज चेतना से मूक मूरत - सी खड़ी इन भग्न मंदिर खेंडहरों के नव सृजन का चित्र नयनों में लिये घनघोर चिन्ता - मग्न हो ? या प्रतीक्षा - रत खड़ी बदलाव की नूतन घड़ी की करवटों को




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