हिंदी गध के योगनिर्मता | Hindi Gadha Ke Yognirmata

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Hindi Gadha  Ke Yognirmata by जगन्नाथ प्रसाद - Jagannath Prasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( इर ) हो वस्तु, एक ही प्रकार का वरगंविभाजन, एक दी प्रकार का जीचनां था 'मौर उसकी समस्या भी एक दी थी । इस चृष्टि से प्रमचंद की कतियाँ लवनवता के पूणण उन्मेप से चिद्दीन थीं । विपय्-संबंधी यदद एकांगिता अ्रुवश्य खटकती है पर झपनो इस परिमिति के कारण उन्होंने उपन्यास के रचना-सौंदर्य को कट्टीं भी विक़त नहदीं दोने दिया । भले दी कथानक व्औौर परिस्थि्तिन्योजना एकट्रेशीय माठूम पढ़ें पर जीवन के संघर्ष का स्वरूप 'मीर युग-दर्शन में जो रत्कर्पन्पुख विकास दिखाई पढ़ता है वह्द भारत के राजनीतिक वातावरण का पूरा प्रतिनिधित्व करता गया है । ई० सन्‌ १६२६ से लेकर ई० सन्‌ १६३४ की सभी विचाश्घारातओं की सजीव भल्क उनकी रचनाओं में मिलती है । प्रेमचंद्ली इस विचार से बड़े भावुक 'ौर जागरूक द्रष्टा और चिंतक थे । 'महात्मा गांधी के दर्शन से प्रभावित होकर निरंतर अपनी भावनाओं शोर आदर्शों का परिप्कार करते गए थे । यह चत्ति उनकी प्रगतिशीलता का ्च्छा उदूघाटन करती है.। वे सामान्य जन-जीवन के सच्चे पारखी थे छौर जन-साहिस्य के श्रेष्ठ निर्माता थे । 'गोदान' छनकी अंतिम कृति थी और उस रचना तक शांते झ्यातें उनकी समस्त झनुभूतियाँ, विचार, 'म्रा्कोक्षाएँ और मान्यताएँ अपने निखार पर झ्रां चुकी थीं । इसलिए जव श्ंतिर्म चार वे झपनी चिर- परिचित वस्तु को लेकर संमुख छाए तो नए उत्साह, नई योजना शौरः तात्त्विक परिष्कार के साथ । इस 'पन्यास में जहाँ उनकी सारी पूर्व कृतियों का सार एकत्र हुआ मिलता है. वहीं वहुवस्तुस्पर्शी प्रतिभा का पूर्ण विकसित स्वरूप भी झालोकित हों उठां दै। भारतीय. जीवन की स्व 'योण परीक्षा; विद्ति और स्वरूप-विन्यास ही इस कति का ' मुख लद्य था । वस्तुतः इसी स्थल पर झाकर प्रंमचंद॒ पूर्णतया शुद्ध बुद्धि से प्रेरित निलिप्त कलाकार बन सके हैं । उनके चस्तु-प्रसार में झाने- वाली जीवन की विभिन्न परिस्थितियाँ, विचार-प्रवाहद 'झौर 'भावनाएँ. यददीं खुलकर खेल सकी हैं ्लौर 'अपने कृतिकार को अमर बना गई हैं ।




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