चार कहानियां | Chaar Kahaniyan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६ चार कहानियाँ पवित्र उत्सवमे ये क्यों पॉव रख जाते ? ये समाजका हू चूसनेवाली जोके है । ये हमारे नौनिद्वालॉका कलेजा खा जानेवाली डायने हैं । थे हमारे घरकी शान और शान्ति मिटा देनेवाली बीमारियों हैं । ये हैजे और प्छेगसे भी मयानक है तपेदिकसे भी भयानक है काले सॉपोसे भी मयानक हैं । हम अपना धन गरीबोसे छीनकर इनको क्यों दे ? जितना घन दस दिनोंमे ये ले जाती हैं उससे साल-भर कई कालेज चल सकते है कई अस्पताल चल सकते हैं । महाराजके पास इसका कोई जवाब न था लाजवाब होकर बोले-- तोक्याकरें? कुँबर--जो ब्राह्मण हैं उनके खेमोमें दिया भी नही जर रहा है यहां बिजलियों जल रही हैं । मैं ऐसी अन्घेरनगरीमे पानी भी नही पीना चाहता ) इससे तो बाहर जाकर भीख मॉग खाना कही अच्छा है। वहां और कुछ न होंगा चित्तकी चॉदनी तो होगी । यह कहकर झुँवरसाहब डर गये कि मुँहसे क्या निकल गया | वे वाहते थे हो सके तो अपने दब्द लौटा के । लेकिन मुँहसे निकले हुए दाब्द वापस नहीं आते । अब महाराजकों भी क्रोध आ गया । कुरसीपर बैठे थे जोशसे उठकर खड़े हो गये और ईटका जवाब पत्थरसे देकर बोछे--ठुम आज चले जाओ । मेरी रियासत सूनी न हो जायगी यह विश्वास रखो । कँवर--मै भी. यहाँसे बाहर जाकर भूखा न भर जाऊंगा यह विश्वास रखिए | यह कहकर कुँवरने बेपरवाहीसे महाराजकी तरफ देखा और वे बाहर निकल राये । थोड़ी देर बाद विलास-मददढमे फिर नर-पिदयाच जमा थे। फिर तबलेपर थाप पड़ी फिर सुरीली तानें गूँज उठी फिर दराबका दौर शुरू हो गया |




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