औरंगज़ेब कालीन मराठा अमीर - वर्ग की भूमिका (१६५८ - १७०७ ) | Aurangjeb Kaleen Ameer-varg Ki Bhoomika (1658-1707)

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Aurangjeb Kaleen Ameer-varg Ki Bhoomika (1658-1707) by योगेश्वर तिवारी - Yogeshwar Tiwariश्रीराम तिवारी - Sriram Tiwari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शौर्य वीरता तथा कर्मठता की जानकारी मिलती है। नि सदेह उत्तरी-मारत के शासकों द्वारा दक्षिणी-भारत पर सतत आक्रमणों की अवधि में महाराष्ट्र की विभिन्‍न जातियों को अपने प्रदेश की सुरक्षा के लिए वीमत्स आक्रमणों का सामना करना पडा जिसके परिणामस्वरुप उनमें राजनीतिक चेतना का समय-समय पर पुनर्विकास प्रारम्म हुआ । ज्ञातव्य है कि चौदहवी सदी के मध्य तक यहीँ के सन्तों के उपदेशों ने मराठी भाषा के माध्यम से ऊँच-नीच के भेदभाव को दूर कर सभी जातियों को एक ही सुत्र मैं बैंघ दिया । यहीँ महानुमाव सम्प्रदाय का उदय हुआ । इससे पूर्व अर्थात्‌ 13वीं सदी से पूर्व 11वीं तथा 12वी सदी में यहाँ वैष्णव शैव लिंगायत नाथपथ तथा पण्ठरपुर का वर्करी सम्प्रदाय जनमानस में अपनी धार्मिक विचारधाराओं का प्रचार कर रहे थे। परन्तु 13वीं सदी में 1270 से 1295 के मध्य गुजरात से आये हुए हरिपाल देव ( चक्रघर ने वेदों तथा उपनिषदों का प्रचार कर यहाँ मानभाव सम्प्रदाय की स्थापना की । उसने समस्त महाराष्ट्र 3 विस्तृत विवरण के लिए देखिए - -आगा महदी हसन द राइज एण्ड फॉल आफ मोहम्मद-बिन तुगलक -पृ0 82 83 एव 164-65 तुगलक डाईनेस्टी - पृ0 97-98 247-48 49 50. हबीब तथा निजामी (पू0 उ0 पृ0 469-72 531-32 तक | 4. महाराष्ट्र के धार्मिक- आन्दोलनों में संतों के योगदान के विस्तृत विवरण के लिए देखिए- रानाडे कृत- मराठा शक्ति का उदय जी एस सरदेसाई मराठों का नवीन इतिहास भाग 1 इत्यादि ।




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