अम्बेडकरवाद के संदर्भ में काशीराम का दलित आन्दोलन | Ambedkaravad Ke Sandarbh Me Kashiram Ka Dalit Andolan

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Ambedkaravad Ke Sandarbh Me Kashiram Ka Dalit Andolan by रंजना कक्कड़ - Ranjana Kakkadरवि कुमार मिश्र - Ravi Kumar Mishr

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रवि कुमार मिश्र - Ravi Kumar Mishr

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अतीत की घटनाओं मे अनेकों त्थ्य सम्भव हो सकते हैं । परन्तु इतिहासकार के पास सम्पूर्ण तथ्य नही हो पाते है । हो भी नहीं सकते हैं क्योकि ना तो वह सलामी लेने वाला राष्ट्रपति है और ना हीं कोई आर्केस्ट्रा का डायरेक्टर । इत्तिहासकार तथ्यों की उस भीड में स्वयं शामिल होता है । जिसमें से उसे अपने त्थ्यो का चयन करना है । इसके तथ्य भीड़ की भाति है उसमें से इतिहासकार को कुछ तथ्यों का चयन करना है 19वीं सदी के महान चिन्तक मि0 ग्राड़प्रिन्ड मे हार्ड टाइम्स में लिखा था कि - हमे सिर्फ तथ्य चाहिये जीवन मे हमें सिर्फ तथ्यों की आवश्यकता है । इन्हीं की बात को आगे बढ़ाते हुये +9वी. सदी के चौथे दशक मे राके ने इतिहास को उपदेशात्मक बनाने के विरोध में कहा था कि - इतिहासकार का दायित्व इतिहास को सचमुच उसी रूप में दिखाना है जैसा कि वह सचमुच था । परन्तु विज्ञानवादियो ने यहा इतिहास से बुद्धि को गायब कर दिया । कैची और गोद शैली के इतिहास का अनुमोदन किया | यह भुला दिया गया कि खन्डहर तभी बोलते हैं जब कि उन्हें बुलवाया जाता हैं । जैसे ही इतिहासकार बोलवाता है वैसे ही हमारे खन्डहर बोलते हैं अन्यथा वह मौन साधे रहते है । त्थ्य और इतिहास के मध्य मे इतिहासकार आता है । प्रख्यात दार्शनिक हाउसमान ने इस ओर ध्यान दिलाते हुये बताया कि - यथात्थ्य होना एक दायित्व है कोई गुण नहीं । अपने इतिहास को इतिहासकार त्थ्यपरक रखने का कार्य तो स्वयं ही करेगा | यहा इतिहास को एक ऐसी आरी के रूप में देखा गया है वस्तुत जिसके तमाम दांत गायब है । इन गायब दांतों का समायोजन इतिहासकार को करना होता है | अर्थात इतिहासकार अपने तथ्यों का समायोजन कर उन्हें आवाज देने का प्रयास करता हैं । उसके त्थ्य पवित्र है और इसमे वह कोई बदलाव नहीं कर सकता है । परन्तु तथ्यों का चयन करना इतिहासकार के लिये एक बड़ी समस्या हो जाती है | इस चयन की समस्या से निपटने के लिये इतिहासकार उन्ही तत्वों को भा




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